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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । शुंठी । शुंठी विश्वा च विश्वं च नागरं विश्वभेषजम् । ऊषण कटुभद्रं च शृंगवेरं महौषधम् ॥ ४४ ॥ शुंठी रुच्यामवातघ्नी पाचनी कटुका लघुः । स्निग्धोष्णा मधुरा पाककफवातविबंधनुत् ॥ ४५ ॥ वृष्या स्वय्र्यावमिश्वासशूलकासहृदामयान् । इंति श्लीपदशोफार्शआना हो इरमारुवान् ॥ ४६ ॥ आग्नेयगुणभूयिष्ठं तोयांशं परिशोषयेत् । संगृह्णाति मलं तत्रु ग्राहि शुव्यादयो यथा ॥ ४७ ॥ विबंधभेदनी या तु सा कथं ग्राहिणी भवेत् । शक्तिर्विबंधभेदेऽस्वा यतो न मलपातने ॥ ४८ ॥ ( ११ ) शुण्ठी, विश्वा, विश्व, नागर, विश्वभेषज, ऊषण, कटुभद्र, शृङ्गवेर और महौषध यह सोंठ के नाम हैं । शुण्डीको हिन्दी में सोंठ, फारसी में जंजबील अग्रेजीमें Drygingerroot कहते हैं । सौंठ-रुचिकारक, आमवातको नष्ट करने वाली, पाचन करनेवाली, कटु, हलकी, चिकनी, गरम, पाकमें मधुर, कफ वात तथा मलके बन्धको नष्ट करनेवाली, वीर्यवर्धक, स्वरको बढानेवाली, तथा वमन, श्वास, शूज, खांसी, हृदय के रोग, श्लीपद, सूजन, बवासीर, आवाद और बायुके विकारों को नष्ट करती है। जो द्रव्य अनिक गुणकी अधिकतासे जलके अंशको शोषण करने वाला हो और मलय बांधनेवाला हो उसको ग्राही कहते है । जैसे सोंठ, यदि इसमें यह शंका की जाय कि जब सोंठ मलके बन्धको भेदन करनेवाल' है फिर यह ग्राही कैसे हो सकती है ? इसके उत्तर में कहते हैं कि सोंठकी शक्ति भेदन करने में है परन्तु मलको पातनः करना इसका धर्म नहीं है ।। ४४-६८ ॥ Aho Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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