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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (९) विभितकः। विभीतकत्रिलिङ्गः स्यादक्षः कर्षफलस्तथा ॥ कलिद्रुमो भूतवासस्तथा कलियुगालयः ॥ ३४॥ विभी-कं स्वादुपाकं कषायं कफपित्तनुत् । उष्ण वीर्य हिमस्पर्श भेदनं कासनाशनम् ॥३५॥ सूक्षं नेत्रहितं केश्यं कृमिवैस्वर्यनाशनम् । विभीतमज्जा तृछर्दिकफवातहरी लघुः ॥३६॥ कषाया मदकृञ्चाथ धात्रीमज्जापि तद्गुणा। बहेडा, विभीतक, विभीतकी, अक्ष,कर्षफल, कलिद्रुम, भूतवास,कलियुगालय, सम्वत सम्वतक, कुशिक और कासघू यह बहेडेके नाम हैं। हिंदीमें बहेडा, फारसीमें बलैले और अंग्रेजीमें Belleric Myrabalam कहते हैं। बहेडा मधुरपाकी. कसैला, कफ और पिनको नष्ट करनेवाला, उष्णवीर्य, स्पर्शमें ठण्डा, दस्तावर और खोमीकोष्ट करनेवाला है, रून है, नेत्रे'को हितकारी है, केशोंको बढाता है, कृमि और स्वरभङ्गको दूर करता है। बहेड़ेकी मज्जा-प्यास, छर्दि, कफ और वायुको हरनेवाली है । हल्की है, कसैली है और मद करनेवाली है, मामलेकी मज्जाके भी प्रायः यही गुण हैं ॥ ३४-३६ ॥ आलमकी। वयस्यामल की वृष्या जातीफलरसं शिवम् ॥३७॥ धात्रीफलं श्रीफलं च तथामृतफलं स्मृतम् । त्रिष्ट्रामलकमाख्यातं धात्री तिष्यफलामृता॥३८॥ हरीतकी मं धात्री फलं किन्तु विशेषतः । रक्तपित्तप्रमेहघ्नं परं वृष्यं रसायनम् ॥ ३९ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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