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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (७) हरीतकी मधुर, तिक्त और कषैली होनेसे पिनको, कटु तिक्त और कसैली होनेसे कफको और अम्ल होने ने वातको हरनेवाली है । यदि ऐसा कहो कि कटु और अम्ल होनेसे पित्तको क्यों नहीं बढाती ? कड़वी और कसली होनेसे वायुको क्यों नहीं बढाती ? क्योंकि प्रभावसे ही इसका दोष हरनेवाला स्वभाव है इसलिये यह दोषोंका प्रकोप नहीं करती। पहले जो हमने रसोंके गुणसे दोषोंका प्रशमनक्रम बतलाया है वह शिष्योंके बोधके लिये है। बहुतसे द्रव्यरस गुणोंमें साम्यावस्था रखते हुए भी आश्रय भेदसे भिन्न भिन्न कर्मों को करते हैं। जैसे मामले और पबहरके फूल रसमें समान होनेपर भी भिन्न भित्र गुणों को करते हैं। हरडकी मज्जा स्वादु है, इसकी नाडियोंमें खट्टापन है, हमें तिक्त रस है, त्वचा कटुपन है और गुठली में कसैला रस है। हरड नई चिकनी, घन, युष्ट. गोल और भारी लेनी चाहिये । जो इन गुणोंवाली हरड जल में गिरानेसे डूब जाय वह हरड अत्यन्त श्रेष्ट और गुणोंके करनेवाली होती है । जो हरड नवीन आदि गुणोंके होते हुए भी दो तोला की तोलमें हो वह हरड श्रेष्ठ कही है ॥ २२-२७ ॥ चर्विता वयत्यग्निं पेषिता मलशोधनी। स्विना संभाहिणी पथ्या भृष्टा प्रोता त्रिदोषनुत्२८ उन्मीलिनी बुद्धिबलेन्द्रियाणां निर्मूलिनी पित्तकफानिलानाम् । वित्रंसिनी मूत्रराकृन्मलानां हरीतकी स्यात्सह भोजनेन ॥ २९ ॥ अन्नपानकृतान्दोषान्वातपित्तकफोद्भवान् । हरीतकी हरत्याशु भुतस्योपरि याजिता ॥३०॥ हरीतकी चर्वण करनेसे अग्निको बढाती है,। पीसकर खानेसे मलको
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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