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________________ (४१६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । वेल्लयेरेल्लनेता यथैका पर्पटी भवेत् । ततश्छुरिकया तान्तु संलग्रामेव कर्तयेत् ॥१०९॥ ततस्तु वेल्लोद्भूयः सट्टकेन च लेपयेत् । शालिचूर्ण घृतं तोयं मिश्रितं सट्टकं वदेत् ॥१०॥ ततः संवृत्य तल्लाप्पी वेदधीन पृथक पृथक् । पुनस्तां वेल्लल्लाप्नों यथास्यान्मंडलाकृतिः १११ ततस्तां सुपवेदाज्य भवेयुश्च स्फुटाः स्फुटाः। सुगन्धया शाया तदुदूलन नाचरेत् ॥ ११२॥ सिदैा फेनिका नाम्ना मंडकेन समा गुणैः । ततः किञ्चिल्लघुरिय विशेषाऽयमुदाहृतः ॥ ११३ ॥ वेल्लोत् प्रसारयेत । वल्लर 'वेलुन' इति लोके पी रोटी लोत्री ‘लाई इति लोक। मोचन युक्त मैदाको मलकर उसमें घी डालकर लम्बी लम्बी बत्ती पनाये, फिर सबको लपेटकर लाबी २ वही करे पश्चात् अननस लकर रोटी बना तदनन्तर चाकूमे कतरकर सब मिला ले, फिर कसरकर ले पौर सहरुका लेप कर, चावलका चूर्व घृत और जन इन सबको मिला , इसको सहक कहते हैं, इस सट्टकको लपेटकर बेल लेवे. फिर मिला कर गोल २ वाले, तत्पश्चात धीमें सेंक लेके, जब सिक जायगी ता नार नार अलग होजायेंगे, गिर गंधित खाण्डकी चासनीमें पागले, तयार होनेपर फेविका (फेती) कराती है। फेनीमें मंडकके खरण रोक विशेष करके किंचित हनकी है॥ १०८-२१३ ॥ अथ शकुली (खस्तापूरी)। समिनाया वृताताया लोत्री कृत्वा च वेल्लयेत् । आज्ये तो भर्नयत्सिद्धां शष्कुल फेनिकागुणाम् ११४॥ मोवनयुक्त मैदाको मनकर नोई कारे,किर पतलो पेजकर पो छोरदेव,
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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