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________________ भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। छौक देवे, जब गेलजाय तब नोन खट्टा चूर्ण आदि तथा होगका पानी डाले यही सम्पूर्ण शाक बनाने की रीति है ॥ ९७ ॥ ___ अथ मठकम् ( मठरी)। समितां मर्दयदन्यजलेनापि च सन्नयेत् । तस्यास्तु वटिकां कृत्वा पचेत्सपिषि नीरसम्॥९८॥ एलालवंगकर्पूरमरिचाद्यैरलंकृते। मज्जयित्वा सितापाके त-स्तं च समुद्धत् । अयं प्रकारः संसिद्धौ मठ इत्यभिधीयते ॥ ९९ ॥ सन्नयेत मर्दयेत। . मठस्तु बृहणो वृष्यो बल्यः सुमधुरो गुरुः। पित्तानिलहरो रुच्यो दीप्तानीनां सुजिाः ॥१०॥ समिता शर्कासपिनिमिता अपरेऽपि ये। प्रकारा अमुना तुल्पास्तेऽपि चेतगणाः स्मृताः१०१ मैदाको घी तथा जलमे खूा मल कर उसमें इलायची, लोंग, कपूर और मिरच आदेिक डाले और सपटो बडी बना लेवे, फिर धीमें सेंककर खांडकी चासनीमें पाग लेधे, फिर चासनीले निकाल लेवे। इस प्रकारसे बनाई हुई वस्तको मठ (मठरी) कहते हैं। मठ-पुष्टिकारक, वृष्य , बलदायक, मधुर, भारी, वात तथा पित्तना शक, रुचिकारी और प्रदीप्त अग्निवालों के लिये उत्तम है । इसी प्रकार और भी मैदा, खांड तथा बोके बने पदार्थ (बालूसाई आदि ) जानने, उनमें भी यही गुण हैं ॥ ९४-१०१ . ___ अथ संया ( गुजिया)। पर्पटयः साज्यसमिता निर्मिता घृतभर्जिनाः। कुहिताश्चालिताः शुद्धशर्कराभिर्विमर्दिताः ॥ १०२॥ . . ... ONShrutdana
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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