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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (४११) (पखनी) कहते हैं, तक्रमम ( अखनी)-वात तथा कफनाशक, हलका, रचिकारक, बलदायक, किंचित पित्तकारक और सम्पूर्ण प्रकार पाहार पचानेवाला है । ८०-८२ ॥ अथ हरीसा ( आस)। पाकपात्रे तु बृहति मांगवण्ड नि निक्षिपेत् । पानीयं प्रचुरं सर्पः प्रभूतं हिंगु जीरकम् ॥ ८३ ॥ हरिद्रामाकं शुण्ठी लवणं मरिचानि च । तण्डुलांश्चापि गोधूमाञ्जम्बीराणां रसान्बहून् ८४॥ तथा सवाणि वस्तूनि सुपक्वानि भवन्ति हि । तथा पचेतु निपुणो बहुमास शितिर्यथा ॥ ८५ ॥ एषा हरीमा बलकृद्वातपित्तापहा गुरुः। शीतोष्णा शुक्रदा स्निग्धा सरासन्धानकारिणी॥८६॥ पाकपात्रमें सडे २ मास के टुकडे डालकर उसमें पागं, घी. होग, जीरा, हलदी अदरक सोठ, नमक, मिरच, चावल, गेहूँ तथ जम्भीरी नीबूका रस बहुत डालके पकावे जब सब वस्तुएँ भलीभाँति पक जाये तब उतार. लेवे इसको हरीसा कहते हैं। हरीसा ("पास ) बलदायक, वात तथा पिननाशक, भारी, शीतल, गरम, वीर्यःधक, स्निग्ध, दस्तावर और टूटी हड्डो आदिको जोहनेवाला. अथ तालतमांसम । (ता हुआ मांग)। शुद्धमांसविधानेन मांसं सम्यक्प्रसाधितम् । पुनस्तदाज्ये सम्भृष्टं तलितं प्रोच्यते बुधैः ॥ ८७॥ तलितं बलमेधामिमांसौजःशुरुवृद्धिकृत् । तर्पणं लघु सुस्निग्धं रोचनं दृढताकरम् ॥ ८८ ॥ शुद्ध मांसकी रीतिके अनुसार मालको पकाकर पीछे उसको घो तक लेखे, उसको तलित मांस कहते है Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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