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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ( ३९९ ) इनके कपडेकी (चलनी) में ज्ञानले उनको मैदा कहते हैं। मैदाको पानी में मांड, कर भली-ते कुचले पश्च' व हाथोंमे लोई बनाकर रोटीके सदृश करले फिर चूल्हेपर उलटे घडेकी तत्लीपर डालकर मन्दाग्निसे बकाये इसको मण्डक कहते हैं । खांड घोर घृतयुक्त दूध के साथ अथवा पकाये हुए के साथ तथा दही पकोडीके साथ भक्षण करे । मण्डकपुष्टिकारक, वृष्य, बलवर्द्धक, प्रत्यन्त रुचि मारक, पाकमें मधुर, ग्राही इलका और तीनों दोषों को नष्ट करता है ।। २०-२४ ॥ · अथ पूरी (दु ) । कुर्यात्समिताऽतीव तन्वीं पर्पटिकां ततः । स्वेदयेत्त के तां तु पोलिकां जगदुर्बु वा । तां खादे सिकायुक्तां तस्या मण्डकाद्गुणाः २५ ॥ मैदाकी अथवा चूर की पपेटिका (पपडी) अर्थात् पतली रोटीके सहश पूरी खेळले, पश्चात् तब में सेकले उसको पोलिका ( एक प्रकारकी पूरी ) कहते हैं । उसको लप्सी (हलुए ) के साथ भक्षण करें, इसके गुणा मण्डलके सहश हैं ॥ २५ ॥ अथ लप्सिका ( लप्सी ) समितां सर्पिषा भृष्टां शर्कगं पयसि क्षिपेत् । तस्मिन्घनी ते न्यस्येलांगं मरिचादिकम् ॥ २६ ॥ सिद्वैषा लप्सिका ख्याता गुणांस्तस्या वदाम्यहम् | लसिका बृंहणी वृष्या बल्या पित्तानिलापहा । स्निग्धा श्लेष्मकरी गुर्वी रोचनी तर्पणी परम् ॥२७॥ मैदrat at भूनकर शर्करा ( बूरा ) युक्त गर्न में डाले, जब पकते २ गाढा हो जाय तब उसमें लोग मिश्च प्रादि डाले सिद्ध होनेपर लप्सिका कहाती है । लप्सिका ( हलुआ ) - पुष्टिदायक, वृष्य, बलकारक, वात
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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