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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। । ३७७) वहिकृत्कफपित्तघ्नो वातसाधारणः स्मृतः । • ज्वरातीसारशोषास्रश्वासामयहरश्च सः॥१८॥ लम्पकर्ण, शश, शूली, लोकर्ण और विलेश र ये खरगोश चौगडाके संस्कृत नाम हैं। खरगोधका मांस शीतल, हलका, ग्राही, रूखा, स्वादु, सदा हितकारी,अग्निकारक, कफ तथा पिसनापक, साधारण वातकारक और ज्वर, भतिसार, शोष, रक्तविकार तथा श्वास को नष्ट करता है ॥४७॥४८॥ अथ सेधा (सेह, साही)। सेधा तु शल्यकः श्वावित्कथ्यन्ते तद्गुणा अथ। शल्यकः श्वासकासास्रशोषदोषत्रपापहः ॥ १९॥ सेधा, शल्पक और श्वावित, ये सेहके संस्कृत नाम हैं। सेहका मांस-बास, खांसी, रक्तविकार, शोष तथा त्रिदोषनाशक है ॥ ४९ ॥ अय पक्षिणां ( पक्षियोंके ) नामानि गुणाश्च । पक्षी खगो विहंगश्च विहगश्च विहंगमः । शकुनिर्विः पतत्री च विष्किरो विकिरोऽण्डजः ५०॥ धान्यांकुरचरा येऽत्र तेषां मांसं लघूत्तमम् । आनूपं बलकृन्मांस स्निग्धं गुरुतरं स्मृतम् ॥५१॥ पक्षी, खग, विहग, विहग विहंगम, शकुनि, वि, पतत्री, विम्किर, विकिर और अण्डज ये पक्षीके संस्कृत नाम हैं। जो पक्षी धान्य तथा अंकुर खानेवाले हैं इससे उनका मांस हलका और उत्तम है । जो पक्षी जलमें रहनेवाले हैं उनका मांस-स्निग्ध, बलदायक और बहुत भारी है ॥ ५० ॥ ५५ ॥ अथ तेषु विष्किरेषु वर्तकः (बटेर)। वर्तीको वर्त्तकश्चित्रस्ततोऽन्या वर्तका स्मृता ।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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