SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३६८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । यो मृगः श्रृंगहीनः स्यात्स मुण्डीतिनिगद्यते। जंघालाः प्रायशः सर्वं पित्तश्लेष्महरा स्मृताः। किञ्चिदातकराश्चापि लघवो बलबद्धनाः ॥ १२॥ हरिण, एण, कुरंग, ऋग्य, पृषत, न्य, शम्बर, रानीव और मुण्डी इत्यादि पशु जघालसंज्ञक हैं। जो मृग लाल वर्णका हो उसको हरिख, जो काला हो उनको एण, किंचित लालवर्णका बडा और पाक सय प्राकृतिधाला हो उसको पुरंग, जो नीले वर्णका हो उसको ऋग्य और लोकमें रोझ जो चद्रके सदृश छींटोवाला और हरिणसे कुछ छोटा हो उसको पृषत, जिमफे बहुनसे सींग हों उसको न्यं कु (बारहसिंगा), बडे रोझको शम्बर, जिसके शरीरमें अधिक रेखा पडी हो उसको राजीव और जो मृग सींगरहित होता है उसको मुण्डी कहते हैं। प्रायः सर्व जंघाल-पिन तथा कफनाशक, कुछ बातकारक, हलके और बलबद्धक हैं। ८-१२॥ अथ विलेशयानां (विलनिवासी प्राणियों की ) गणना गुणाश्च । गोवाशशभुजंगाखुशलक्याया,विलेशयाः । बिलेशया वातहरा मधुरा रसशकयोः । बृंहणा बद्धविण्मूत्रा वीर्योष्णाश्चप्रकीर्तिताः ॥३३॥ गोह, खरगोश, सांप, मूला और शल्लकी (सेई ) इत्यादिक विलस्थ (मिट्टीम रहनेवाले) कहाते हैं। विलस्थों के मांस-वातनाशक, रसमें तथा पाकमें मधुर, पुष्टिकारक, मल तथा मूत्रको बांधनेवाले और उष्णवीर्य हैं ॥ १३ ॥ अथ गुहाशयानां ( गुफानिवासी प्राणियोंकी ) गणना गुणाश्च । सिंहन्याप्रवृका ऋतरक्षुदीपिनस्तथा । बभ्रुजम्बूकमार्जारा इत्याधाः स्युर्मुहाशयाः ॥१४॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy