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________________ ( ३६६ ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । अथ मांसवर्गः । अथ मांसस्य नामानि । मांसं तु पिशितं क्रव्यमामिषं पललं पलम् । मांस वातहरं सर्वे बृंहणं बलपुष्टिकृत् । प्रीणनं गुरु हृद्यञ्च मधुरंरसपाकयोः ॥ १ ॥ मांस, पिशित, कव्य, आमिब, पलल और पल ये मलिके संस्कृत नाम हैं । गुण-सर्व कारके मांस वातनाशक, पुष्टिकारक, वनबर्द्धक, तृमिदायक भारी, हृदयको प्रिय और रतमें तथा पाकमें मधुर हैं ॥ १ ॥ अथ मांसभेदः । मांसवर्गो द्विधा ज्ञेयो जांगलाssनूपभेदतः ॥ २ ॥ सम्पूर्ण मांस दो प्रकार के हैं, एक जांगलमांस और दूसरे प्रानूपमांस || जांगलमांसस्य लक्षणं गुणाश्च । मांसवत्र जंघाला बिलस्थाश्च गुहाशयाः । तथा पर्णमृगा ज्ञेयाविष्किराः प्रतुदास्तथा ॥ ३ ॥ प्रसहा अथ च ग्राम्या अष्टौ जांगलजातयः । जांगला मधुरा रूक्षास्तुवरा लघवस्तथा । बल्यास्ते बृंहणा वृष्या दीपना दोषहारिणः ॥ ४॥ मूक मिन्मिनत्वं च गद्दत्वार्दिते तथा ॥ बाधिर्य्य मरुचिच्छर्दिप्रमेदमुखजान् गदान् ॥ श्रीपदं गलगण्डञ्च नाशयत्यनिलामयान् ॥ ५ ॥ यहां मांसवर्ग में जंघाल, बिलस्थ (बिलेशय), गुहाशय, पर्ण मृग, विष्किर, प्रतुद, प्रसह और ग्राम्य ये पाठ जांगल जातिय हैं ।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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