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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. डी. । ( ३४९ ) को और सौंठके साथ खाया हुआ सम्पूर्ण बातको शीघ्र ही नष्ट कर देता है । इस प्रकार त्रिदोषको नष्ट करनेवाले गुडको प्रणाम हैं ॥ २८ ॥ खंडम् | खंडं तु मधुरं वृष्यं चक्षुष्यं बृंहणं हिमम् । वातपित्तहरं त्रिग्धं बल्यं वांतिहरं परम् ॥ २९ ॥ खाण्ड - मधुर, वीर्यवर्द्धक, नेत्रोंको हितकारी, बृंहण, शीतल, वातपित्तनाशक, बलकारक तथा वमनको हरनेवाली है ॥ २९ ॥ सिता । खंडं तु सिकतारूपं सुश्वेता शर्करा सिता । सिता सुमधुरा रुच्या वातपित्तास्रदाहनुत् ॥ ३० ॥ मूर्च्छाछर्दिज्वरान हंति सुशीता शुक्रकारिणी ॥३१॥ वालूरेते के समान तथा श्वेत खाण्डको सिता अथवा शर्करा कहते हैं। सिता - अत्यन्त मधुर, रुचिकारक, अत्यन्त शीत, वीर्यवर्धक तथा बात, पित्तरक्तविकार, दाह, मूर्च्छा, छर्दि और ज्वरको दूर करती है ॥ ३० ॥ ३१ ॥ पुष्पासिता । शीता पुष्पसिता वृष्या रक्तपित्तहरी लघुः ॥ ३२ ॥ पुष्प सिता अर्थात बूरा - वीर्यवर्द्धक, रक्तपित्तनाशक और हलकी हैं ३२॥ सितोपला । सितोपला सरा लध्वी वातपित्तहरी हिमा । मधुजाशर्करा रूक्षा कप. पित्तहरी गुरुः ॥ ३३ ॥ छतीसार तृड्रदा हरकहतुवरा हिमा ।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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