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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३४३) मधुनः शर्करायाश्च गुडस्यापि विशेषता ॥२६॥ एकसंवत्सरेऽतीते पुराणत्वं स्मृतं बुधैः। मया मधु-पुष्टिकारक, कफको किंचित हरनेवाला, दस्तावर तथा. पुराना मधु-ग्राही, रूक्ष, मेदनाशक और अत्यन्त लेखन होता है। मधु, खाण्ड और गुड एक वर्ष बीतनेपर पुराने होते हैं। यह विद्धानोंने कहा है ॥ २५ ॥२६॥ विषपुष्पादपि र सविषा भ्रमरादयः ॥२७॥ गृहीत्वा मधु कुवैति तच्छी गुणवन्मधु । विषान्वयात्तदुष्णं तु द्रव्येणोष्णेन वा सह ॥२८॥ उष्णार्तस्योष्णकाले च स्मृतं विषसमं मधु । विषले फूलोंसे रस लेकर विषैले भौंरे यदि मधु बनाये तो वह शीतल ही गुणकारक है। विषले पदार्थका संयोग होनेसे, गरम होनेसे, गरम द्रव्यके साथ संयोग होनेसे अथवा किसी उष्ण रोगसे पीडितको देनेने यह मधु विषके समान हो जाता है ।। २७ ॥ २८ ॥ मयनं तु मधूच्छिष्टं मधुशेषं च सिस्थकम् ॥ २९ ॥ मध्वाधारो मदनकं मधूषिामपि स्मृतम् । मदनं तु मृदु स्निग्धं भूतघ्नं व्रणरोपणम् ॥ ३० ॥ भनसंधानकृद्रातकुष्ठवीसपरक्तजित् । इति मधुवर्गः। मयन, मधूच्छिष्ट, मधुशेष, सिरक, मध्वाधार, मधूषित यह मोमके नाम हैं। मोम-मृदु, भूतनाशक, व्रणरोपक, टूटे हुएको जोडनेशला तथा वात, कुष्ठ, विसपे और रक्तविकारको जीतनकाला है ॥ २९ ॥ ३०॥ इति श्रीवैद्यरत्नपंडितरामप्रसादात्मजविद्यालं हार-शिवशर्मनेद्यकृत-शिवप्रकाशिका भाषायां हरीतक्यादिनिघण्टो मधुवर्गः समाप्तः ॥ १८ ॥ ICChincreyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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