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________________ . हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३२१ ) जिस दहीमें मीठेपनका नाश तथा खटाई व्यक्त हो उसको अम्ल कहते हैं। अम्ल दही पित्त, रक्तविकार और कफको बढाता है। जो दही दन्त और रोमोंमें हर्ष तथा कण्ठ आदिमें दाह करता है उसको अस्यम्ल कहते हैं। अत्यम्ल ददी- दीपन तथा रक्त, वात और पित्तका अत्यन्त कोप करता है। गायका दही विशेष करके मीठा, खट्टा, रुचिकारक, पवित्र, दीपन, हृदयको प्रिय, पुष्टिकारक तथा पवननाशक है। सष दधियोंमें गायका दही ही अधिक गुणोंवाला है। भैंसका दही अत्यन्त स्निग्ध, कफकारक, वातपिज़नाशक, पाकमें स्वादु, अभिष्यन्दि वीर्यवर्धक, भारी और रक्तको दूषित करने वाला है। बकरीका दही--गरम, ग्राही, हलका; त्रिदोषनाशक तथा श्वास, कात, अश, क्षय और कृशतामें हितकारी है तथा दीपन है। पके हुए दूधका दही-रुचिकारक, स्निग्ध, उत्तम गुणोंशाला, पित्त तथा वायुको नष्ट करनेवाला तथा सब धातु, अग्नि और बलको बढाने. बाला है। साररहित दूधका दही-प्रारी,शीतल, चातकारक, लघु,विष्टम्भकारक, दीपन, रुचिकारक और ग्रहणी रोग को नष्ट करने वाला होता है। गालित अर्थात् वस्त्र में छना हुआ दही-स्निग्ध, वातनाशक,कफकारक, भारी, बलपुष्टिकारक, रुचिकारक, मधुर और किंचित् पित्तको करनेवाला है। बूरेवाला दही-श्रेष्ठ तथा तृष्णा, पित्त और रक्तविकार को जीतने घाला है। गुडवाना दही-वीर्यवर्धक, बृहप, तृप्तिदायक और भारी रात्रिमें दही खाने योग्य नहीं यदि खाना भी रो तो बिना घृत और खाण्ड, बिना मूंग की दालके, बिना मधुके, तथा बिना गरम पदार्थों के और आपलोंकन खावे । रातको दही खाना उचित नहीं, यदि खाग हो तो घृत और जल डालकर खावे । एवं रक्त पित कफविकारों में तो दही खाना ही नहीं चाहिये। Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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