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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । (३१७ ) शतमें चन्द्रमा के गुणोंकी आधिक्यताले तथा व्यायाम और परिश्रमके न करने से प्रातःकालका दूध-प्रायः शामके दूध से भारी तथा ठण्डा है । सूर्य की किरणोंके सम्पर्कसे, वायुके व्यायाम करनेसे, वायुके सेवन करनेसे सायंकालका दूध प्रातःकालके दूधकी पिक्षा हलका तथा वात और कफको जीतनेवाला है । हमें पिया हुआ दूध-वीर्यवर्धक, धातुओंको पुष्ट करनेवाला और अग्निको बर्धन करनेवाला होता है । मध्याह्नमें पिया हुआ बलदायकः कफनाशक, पित्तको हरनेवाला तथा दीपन होता है। रात्रिमें पिया हुआ बच्चों के लिये अग्निदीपक तथा बलकारी, वृद्धोंके लिये वीर्योत्पादक, पथ्यकारक अनेक दोषोंको शमन करनेवाला है। कुछ मनुष्यों के मतमें रातको दूध ही पीना चाहिये। उसके साथ अन्न यादि नहीं खाना चाहिये । क्यों कि यदि रात्रि में निद्रा नहीं भावे तो अजीर्ण होनेका भय है तथा वर्तन में लिया हुआ दूध सब पी जाना चाहिये छोडना नहीं चाहिये छोडा हुम्रा दूध दोषयुक्त हो जाता है। मनुष्य दाह करनेवाले जो अन्नपान करता है उनकी शांति के लिये रातको उसको दूध अवश्य पीना चाहिये। जिन की प्रग्नि दीप्त हो उनके लिये तथा कुश, बालक, वृद्ध इनके लिये दूध अत्यन्त हितकारी है। क्यों कि यह शीघ्र ही वीर्यको उत्पन्न कर देता है । गाय और बकरीके दूधको यदि दण्डसे मथ कर किंचित गरम करके पीछे तो यह दूध-लघु, वीर्यवर्धक, ज्वरनाशक तथा त्रिदोषनाशक होता है । गाय और बकरीके दूधकी फेन ( झाग ) त्रिदोषनाशक रुचिकारक बलवर्धक, अग्निवर्धक, वीर्यकारक, शीघ्रही तृप्तिको करनेवाली, हलकी तथा अतिसार, मन्दाग्नि, ज्वर और अजीर्ण में प्रशस्त है ॥ ३४-४४ ॥ निर्दितम् । विवर्ण विरसं चाम्लं दुर्गंध ग्रथितं पयः । वर्जयेदम्ललवणयुक्तं बुद्धया दिहृद्यतः ॥ ४५ ॥ बुरे वर्णवाले, रसरहित, दुर्गन्धिय, फटे हुए अथा अम्ल और लवण
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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