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________________ (२९८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । साधारण इन भेदोंसे जिस देशमें थोड़े वृक्ष हों और पित्त तथा रक्तसम्बन्धि रोग हो उसको जांगल देश कहते हैं और वहांके जलको जांगल कहते हैं। जो देश बहुर जलवाला, बहुत वृक्षोंवाला तथा वात और कफके रोगोधाला होता है उसे अनूप देशके लक्षण मिश्रित हों उसे साधारण देश तथा वहां के जलको साधारण जल कहते हैं । जांगल जल रूक्ष, नवणरसयुक्त, हलका, पित्तनाशक वद्धिको हरने वाला, कफको बढानेवाला, पथ्य और बहुतसे विकारोंको करने वाला है। आनूपजल-अभियदि, स्वादु, स्निग्ध, गाढा, भारी, वह्निको हरनेवाला, कफकारक और नित्य विकारोंको उत्पन्न करनेवाला होता है। साधारण जल-मधुर, दीपन, शीतल, हलका, तृप्तिकारक, रुचिकारक तथा तृष्णा, दाह और विदोषको नष्ट करने वाला है । २५-३१ ॥ भोमनादेयम् । नया नदस्य वा नीरं नादेयमिति कीर्तितम् ॥३२॥ नादेयमुदकं रूक्षं वातलं लघु दीपनम् । अनभिष्यंदि विशदं कटुकं कफपित्तनुत् ॥ ३३ ॥ नद्यः शीघ्रवहा लव्यः सर्वा याश्चामलोदकाः । गुर्व्यः शैवलसंछन्नाः मंदगाः कलुषाश्च याः ॥३४॥ हिमवत्प्रभवाः पथ्या नद्योश्माहतपाथसः। गंगाशतदुसरयूयमुनाद्या गुणोत्तमाः॥ ३५ ॥ सह्यशैलभवा नद्यो वेणीगोदावरीमुखाः । कुबैति प्रायशः कुष्ठमीषद्वातकफावहाः ॥ ३६ ॥ नदीसरस्तडागस्थे कूपप्रस्रवणादिजे । उदके देशभेदेन गुणान्दोषांश्च लक्षयेत् ॥ ३७॥ नदी या नदके जनको नादेय करते हैं। नदीका जल-कक्ष, वातका
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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