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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३९१) शीतल, मधुर, कसैले, भारी, एवं पिन, रक्त, दाह और नेबरोगोंको दूर करते हैं। तथा ग्राही, शुक्रवक, वातकफकारक रुचिकारक और स्तनों में दूधको बढ़ाते हैं ॥ १११-११३ ॥ शालूकम् । पद्मादिकंदः शालूकं करहाटश्च कथ्यते । मृणालमूलं भिस्साडं लाजलूकं च कथ्यते ॥११४॥ शालूकं शीतलं वृष्यं पित्तास्त्रदाहनुद्गुरु । दुर्जरं स्वादुपाकं च स्तन्यानिलकफप्रदम् ॥११५॥ संग्राहि मधुरं रूक्षं मिस्साडमपि तद्गुणम् । कमलकी सब जातियों के कन्दको शालूक और करहाट कहते हैं। कमलकी इंडीके मूलको भिस्लाद और लाज लूक कहते हैं। इनको हिंदीमें भिसे कहते हैं। शालूक-शीतल, वृष्य, रक्तपित्तनाशक, दाहनाशक, भारी, दुर्जर, स्वादुपाकी, स्तन्यबर्द्धक, वातकफकारक, संग्राही, मधुर और कक्ष होता है । भित्तों के भी यही गुण हैं ।। ११४ ॥ ११५ ।। वर्जनीयम् । बलं ह्यनात जीर्ण व्याधितं कृमिभक्षितम्।।११६॥ कंदं विवर्जयेत्सर्वं यद्वाग्न्यादिविदूषितम् ।। अतिजीर्णमकालोत्थं सूक्षसिद्धमदेशजम् ॥ ११७॥ कर्कशं कोमलं चातिशीतं व्यालादिदूषितम् । संशुष्कं सकलं शाकं नाश्रीयान्मूलकं विना ११८॥ बहुत कच्चे कन्द, विना ऋतु उत्पत्र हुए, पुराने, रोगयुक्त, कृमे. यों से भक्षिा, जो वायु या अग्निजे दूषित हो, ऐसे कद नहीं खाने Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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