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________________ ( २८६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। डोंडिका। डोंडिका विषमुष्टिश्च डोंडीत्यपि:सुमुष्टिका ॥८७॥ डोंडिका पुष्टिदा वृष्या रुच्या वह्निप्रदा लघुः। वातपित्तकफाशीसिकृमिगुल्मविषाम यान् ॥ ८८ ॥ डोंडिका, विषमुष्टि, डोंडी और सुमुष्टिका यह डोंडीके फलों के नाम हैं। डोंडी-पुष्टिकारक, वृष्य, रुचिकारक, अग्निवर्द्धक और हल्के हैं। एवं वात, पित्त, कफ, अर्श, कृमि, गुल्म और विष के विकारोंको दूर करते हैं। ८७ ॥ ८८ ॥ कंटकारी। कंटकारीफलं तिक्तं कटुकं दीपनं लघु । रूक्षोष्णं श्वासका सध्नं घरानिलकफापहम् ॥८९॥ कंटकारीके फल-तिक्त, कटु, दीपन, हलके, रूक्ष, उष्ण, श्वासकालनाशक तथा ज्वर, हात और कफ को हरने वाले है ॥ ८९ ॥ नालशाकम् । तीक्ष्णोष्णं वार्षपं नालं वातश्लेष्मवणापहम् । कंडूमिहदद्रुष्टनं रुचिकारकम् ॥ ९ ॥ सरसोंकी गंद का शाक-वात कफ नाशक, व्रणों को दूर करनेवाला, खाज, यमन, दछु, और कुष्टको हरनेवाला तथा रुचिकारक है ॥ ९० ॥ मूल कम् । भवेन्मूलकनालं तु विष्टंभि कफकारकम् । वातपित्तहरं रुच्यं सुशुष्कं तद्भणाधिकम् ॥९१॥ मूलीकी गंदल-विष्टम्भी, कफकारक, वातपित्तनाशक और रुचिकारक होती है । सूखी हुई गंदलें अधिक तुम करने वाली हैं। ९१ ॥ . . . .
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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