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________________ (२८२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । और हस्तिपर्ण यह बडी तोरीके नाम हैं। बडी तोरी-स्निग्ध, रक्तपिन, पौर वायुको बर करती है। इसको रामतोरी भी कहते राजकोशातकी। धामार्गवः पीतपुष्पो जालनी कृतवेधनः। . . राजकोशातकी चेति तथोक्ता राजिमत्फला ॥६॥ राजकोशातकी शीता मधुरा कफवातला । पित्तघ्नी दीपनी श्वासज्वरकालकृमिप्रणुत् ॥६८ ॥ धामार्गध, पीतपुष्प, जालनी, कृतवेधन, राजकोशातकी और राजिमत्फला या धारीदार कालीतोरोके नाम हैं । राजतुरईको अंग्रेजीमें Bitter Luffa कहते हैं। यह शीतल, मधुर, कफ-वातकारक, पिननाशक, दीपनी एवं श्वाल, घर, काल और कृमियोंका नाश करती है ॥ ६७ ॥ ६८ ॥ पटोलः। पटोलः कूलकस्तितः पांडुकः कर्कशच्छदः । राजीफलः पांडुफलो राजेयश्चामृताफलः ॥ ६९ ॥ बीजगर्भः प्रतीकश्च कुष्ठहा कासमंजनः । पटोलं पाचनं हृद्यं वृष्यं लध्वग्निदीपनम् ॥ ७० ॥ स्निग्धोष्णं हंति कासास्रज्वरदोषत्रयक्रिमीन् । पटोलस्य भवेन्मूलं विरेचनकरं सुखात् ।। ७१ ॥ नालं श्लेष्महरं पत्रं पित्तहारि फलं पुनः । दोषत्रयहरं प्रोक्तं तद्वतिक्तपटोलकम् ॥ ७२ ॥ पटोल, क्लक, हित, पाण्डुक, कर्कशच्छद, राजीफल, पाण्डुफन राजेय, अमृतफल, बीजगर्भ, प्रतीक, कुष्ठहा और कासमंजन यह पटो. लके नाम हैं । पटोल, (पोन),पाचन, हदयको हितकारी, वृष्य हल्का,
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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