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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । नीवारः । प्रसाधिका तु नीवारस्तृणान्नमिति च स्मृतम् । नीवारः शीतलो ग्राही पित्तघ्नः कफवातकृत् ॥ ८८॥ प्रसाधिका, नीवार और तृणान्न यह नीवारके नाम हैं। नीवार - शीतल, ग्राही, पित्तनाशक और कफवातकारक है ॥ ८८ ॥ ( २६७ ) यवनालः । यवनालो हिमः स्वादुर्लोहितः श्रेष्म पित्तजित | अवृष्यस्तुवरो रूक्षः क्लेदकृत्कथितो लघुः ॥ ८९ ॥ यवनाल घास के बीज-शीतल, स्वादु, रक्त, कफ और पित्तको जीतनेवाले, वीर्य्यशोषक, कसैले, रूक्ष, हलके और क्लेदकारक हैं ॥ ८९ ॥ शणः । शणः प्रोक्तो मातुलानी जन्तुतंतुर्महाशना । शणो हिमो लघुग्रही तत्पुष्पं प्रदास्रजित् ॥९०॥ शण, मातुलानी, जंतुरंतु, महाशना यह सनके नाम हैं। शणबीजशीतल, हलके और ग्राही होते हैं। इसके पुष्प रक्तप्रदरको दूर करते हैं ॥ ९० ॥ नवधान्यादिः । धान्यं सर्वे नवं स्वादु गुरु श्लेष्मकरं स्मृतम् । तत्तु वर्षोषितं पथ्यं यतो लघुवरं हितम् ॥ ९१ ॥ वर्षोषितं सर्वधान्यं गौरवं परिमुंचति । न तु त्यजति वीर्य्यं स्वं क्रमान्मुं चत्यतः परम् ॥ ९२ ॥ एतेषु यवगोधूमतिलमाषा नवा हिताः । पुराणा विरसा रूक्षा न तथा गुणकारिणः ॥ ९३॥ इति धाग्यवर्गः । सब प्रकारके नवीन धान्य- स्वादु, भारी और कफकारक होते हैं । वही धान्य एक वर्षके अनन्तर हल्के, श्रेष्ठ शपथ्य हो जाते हैं क्योंकि
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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