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________________ ( २५६ ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । और अग्निषद्धक, कटुपाकी, धनभिष्यन्दि, स्वरकारक, बलवर्द्धक, भारी, वातप्रधान, मलकारक, वर्ण पौर स्थेयके करनेवाले, पिच्छल, तथा कण्ठ और त्वचा के रोग, कफ, पिस, मेद, पीनस, श्वास; कास, उरुस्तंभ, रक्तविकार और प्यासको दूर करते हैं । जवोंसे अनुभव न्यून गुणवाले होते हैं । तोक्म अत्यन्त न्यून गुणवाले होते हैं ।। २७-३१ ॥ गोधूमः । गोधूमः सुमनोऽपि स्यात्रिविधः स च कीर्तितः ॥ ३२ ॥ महागोधूम इत्याख्यः पचाद्देशात्समागतः । मधुली तु ततः किचिदल्पा सा मध्यदेशजा ॥ ३३ ॥ निःशुको दीघगोधूमः क्वचिन्नंदीमुखाभिधः । गोधूमो मधुरः शीतो वातपित्तहरो गुरुः ॥ ३४ ॥ कफशुक्रप्रदो बल्यः स्निग्धः संधानकृत्सरः । जीवनो बृंहणो वर्ण्यो वण्यरुच्यः स्थिरत्वकृत् ॥ ३५ ॥ कफप्रदो नवीनो न तु पुराणः । मधूली शीतला स्निग्धापित्तघ्नी मधुरा लघुः ॥ ३६ ॥ शुक्रला बृंहिणी पथ्या तद्वनंदीमुखः स्मृतः । गोधूम, सुमन, मधूली यह गोधूमके नाम हैं। गोधूम तीन प्रकारकी होती है। पश्चिमदेश से प्राई हुई बडे आकारवाली गेहूं को महा गोधूम कहते हैं । मध्यदेशमें उत्पन्न होनेवाली किंचित् छोटे आकार की मधूज़ो कही जाती है। किसी देशमें शूकरहित लम्बी गोधूमको नन्दीमुख कहते हैं गेहूं (कणक) मधुर, शीत, वातपित्तनाशक, कफ और शुक्रको बढानेवाली, बलकारक, त्रिग्ध, संधानकारी, सर, जीवन, बृंहण, वर्णकारक, व्रणोंको भरनेवाली, रुचिकारक तथा आयुवर्द्धक है, । नवीन गेहू कफवर्द्धक होता है, परन्तु एक वर्षके अनन्तर कफकारक गुण इसमें नहीं रहता है। Aho ! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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