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________________ ( २३८ ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । गैरिकद्वितयं त्रिग्यं मधुरं तुवरं हिमम् ॥ १२६ ॥ दाहपित्तास्रकफहिक्काविषापहम् । चक्षुष्यं गैरिक, रक्तधातु, गरेब चोर गिरिज यह गेहके नाम हैं। दूसरा स्वर्ण गैरिक होता है वह गेरूने अत्यन्त लाल होता है। दोनों प्रकार के - स्निग्ध, मधुर, क, शील, नेत्रोंको हितकारी तथा दाह, पित्त, -रक्त, हिचकी और विषको हरने वाले हैं ॥ १५५ ॥ १४६ ॥ खटी नौरखटो | खटिका कठिनी चापि लेखनीचनिगद्यते ॥ १४७ ॥ खटिका दादजिच्छीता मधुरा विपशोथजित् । लेपादेते गुणाः प्रोकाभक्षितामृत्तिकानमा ॥ ३४८ ॥ खटी गोरखटी द्वे च गुणैस्तुल्ये प्रकीर्तिते । खटिका, कठिनी और लेखनी यह खड़िया मट्टीके नाम हैं । खडिया मिट्टी ले करने से दादको जीतती है । शीवन, मधुर तथा विष और सुजनको दूर करनेवाली है । परन्तु खानेले मिट्टोके समान हानिकारक है । इसका भेद एक गोरखदी होती है । गुणमें दोनों खटिका तुल्या : होती हैं ॥ १४७ ॥ १४८ ॥ वालुका । वालुका सिकना प्रोका शर्करातजापिच ॥ १४९॥ वालुका लेखनी शीतांत्र गोरक्षतनाशिनी । बालुका, विकता, शर्करा रेतजा वह बालू रेत के नाम हैं। बालूरेत, लेखन, शील, व्रम और उरःक्षतका नाय करती है ॥ १४९ ॥ खपरम् । खर्परं तुत्थकं तुत्थादन्यत्तइसकं स्मृतम् ॥ १५० ॥ ये गुणास्तुत्य के प्रोकास्ते गुणा रसके स्मृताः । Shriyanam खर्पर, तुत्थक यह खनके नाम हैं तां ले उत्पन्न होनेवाला खर
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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