SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२३१ ) ऊर्ध्वपातनयुक्त्या तु डमरूयन्त्रपचितम् । हिंगुलं तस्य मुतं तु शुद्धमेव न शोधयेत् ॥११३॥ हिंगुल, दरद, म्लेच्छ इंगुल, पूर्णपारद, मक्षिरंग, सुरंग और करमार' बंधन यह शिंगरफके नाम हैं । शिगरफ तीन प्रकारका होता है-१ चौर, २ शुक्रतुण्डक, ३ हंसपाद यह तीनों एकसे दूसरा उत्तरोत्तर विशेष गुणवाला है। चमार सफेद वर्णवाला, शुक्रतुण्ड कुछ पीला और हंसपाद जपाकुसुमके समान लाल वर्णवाला सबमें उत्तम होता है। शुद्ध हिंगुल-तिक्त, कषाय, कटु, नेत्ररोगहर, कफपित्त नाशक, हल्लास, कुष्ठ, ज्वर, कामला, प्लीला, ग्रामघात और गरविकारको दूर करता है। हिंगुलको नींबू के रस में पीसकर जर्वपातन यन्त्रमें उड़ा लिया जाय तो इसमेसे शुद्ध पारद निकल पाता है। साधारण रसोमें उपयोग करने के लिये इसको और शोधन करनेकी पावश्यकता नहीं है । ११०-११३ ।। अभ्रकम् । पुरा वधाय वृत्रस्य वज्रिणा वज्रमुद्धृतम् । विस्फुलिंगास्ततस्तस्माद्गने परिसर्पिताः ॥११४॥ ते निपेतुर्घनध्वानाः शिखरेषु महीभृताम् । तेभ्य एव समुन्नं तत्तद्विरिषु चाप्रकम् ॥ ११५॥ तघ्रं वज्रपातत्वादभ्रमभ्ररवोद्वात् । गगनात्स्खलितं यस्माद्गनं च ततो मतम् ।।११६।। विपक्षत्रियविद्शूदभेदात्तस्माचतुर्विधः । कमेणैव सितं रक्तं पीतं कृष्णं च वर्णतः ॥ ११७॥ प्रशस्यते सितं तारे रक्त तन रसायने । पीतं हेमनि कृष्णं तु गदेषु द्रुतयेऽपि च ॥ ११८॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy