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________________ (२२८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टा.। इनमें श्वेत पारद सब रोगोंको नाश करनेके लिये, लाल पारद रसायन कर्ममें, पीला पारद धातुधन में और काला पारद आकाशगमनमें श्रेष्ठ माना जाता है। पारद, रसधातु, रसेन्द्र, महारस, चपल, शिववीर्य, रस, सूत और जितने शिवजीके नाम हैं वह पारेके संस्कृत नाम हैं। हिन्दी में पारा, फारसी में सीमा और अंग्रेजीमें Mercury कहते हैं । पारद छे रसोंबाला, स्निग्ध, त्रिदोषन, रसायन, योगक्षाही, अत्यन्त पुरुषार्थवर्द्धक, दृष्टिको बन देनेवाला, रूब रोगोंको हरनेवाला और विशेष कर संपूर्ण कुष्ठं को दूर करता हैं। स्वस्थावस्थामें पारा ब्रह्मा, बद्धहुमा पास जनादन, रंजित और कामित पारा साक्षात महादेव होता है। कजली आदिमें मूर्छित पारारोगोंको हरता है। खेचरी गुटिकाके रूपमें बँधा हुआ पारा आकाशगम नकी शक्ति देता है। और मारा हुआ पारद उमरको बढ़ाने वाला रसायन होता है । इस लिये पारे के समान कृपा करनेवाला दूसरा द्रव्य नहीं है, जिस रोगकी कोई चिकित्सा नहीं है, जो रोग सर्वथा असाध्य है उनको पाराही नाश कर सकता है । चाहे वह रोग मनुष्य या हाथी घोड़ आदि पशुको भी हो। पारेमें स्वभावसे ही मल, विष, वह्नि, गिरि और चपलता यह दोष रहते हैं। और नाग तथा वेग यह दो दोष पारेमें संसर्ग पाते हैं। इनमें मनदोषसे मूच्र्वा, विषसे मृत्यु, अग्निदोषसे शरीरमें अत्यंत दाह गिरिदोषसे शरीरका जकड जाना, चांचल्यसे वीर्यनाश, वंगदोषसे कुष्ट पौर नाग दोषसे गंडमाला, आदि विकार उत्पन्न होते हैं । इसलिये इन सात दोषोंको दूर करने के लिये पारदको स्वेदन, पातन आदि संस्कारों द्वारा शोधन कर लेना चाहिये । इन सब दोषोंमें भी वह्नि, विष और मल यह तीन दोष प्रधान माने जाते हैं । यह पारेके तीनों दोष संताप,मृत्यु भौर मुच्छ को उत्पन्न करते हैं। यद्यपि पारेके संपूर्ण तीनों दोष निकाल देना अत्यावश्यक है परन्तु यहि,विष और मल इनको तो विशेष रूपसे निकाल देना ही चाहिये । जो मनुष्य विमा संस्कार किये हुए पारे
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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