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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२२३) तुत्थं ताम्रोपधातुर्हि किंच ताम्रेण तद्भवेत् । किंचित्ताम्रगुणं तस्माद्रक्ष्यमाणगुणं च तत् ॥ ६८॥ तुत्थक कटुकं क्षारं कषाय वामकं लघु । लेखनं भेदनं शीतं चक्षुष्यं कफपित्तहृत् ॥ ६९ ॥ विषाष्मकुष्ठ कंडूघ्नं खपरं चापि तद्गुणम् ।। तुत्थ,वितुनक,शिखिग्रीव और मयूरक यह नीलेथोथेके नाम हैं। नीला योथा ताम्रका उपधातु है और ताम्रसे ही उत्पन्न होता है। उसमें ताम्रकेसे गुण होते हैं तथा तुत्थ-कटु,तार,कषाय,यामक,हल्का,लेखन,भेदन,शीतल नेत्रोंको हितकारी कफ, पित्तके हरनेवाला, विष, पथरी, कुष्ट और कण्डु इनको हरनेवाला है और तुथई खपरियेके भी यही गुण ॥ ६७ ६९ ॥ कांस्यम् । ताम्रस्त्रपुजमाख्यातं कांस्य शेषं च कांसकम् ॥७॥ उपधातुर्भवेत्कांस्यं द्वयोस्तरणिरंगयोः। कांस्यस्य तु गुणा ज्ञेयाः स्वयोनिसदृशा जनैः७१॥ संयोगजप्रभावेण तस्यान्येऽपि गुणाः स्मृताः। गुरु नेत्रहितं रूक्षं कफपित्तहरंपरम् ॥ ७२ ॥ ताम्रखपुज, कांस्य,घोष, कांसक यह कांसीके नाम हैं। कांसी तांबे और रंगके योगसे उत्पन्न होती है। यद्यपि कांसी में तांबे और रंगके समान ही गुण हैं परन्तु योगज प्रभारसे इसमें गुरु,नेवहितकर,रूक्ष और कफपित्त के हरनेवाले गुण विशेष रूपसे हैं ॥ ७०-७२ ॥ पित्तलम् । पित्तलं त्वारकूटं स्यादारो रीतिश्च कथ्यते ॥ ७३ ॥ राजरीतिब्रह्मरीतिः कपिला पिंगलापि.च ।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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