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________________ हरीतक्या दिनिघण्टुः भा. टी.। (२१९) तिक्त, सर,शीतल. मधुर, कसैला, भारी,खा, वयस्थापक, नेत्रोंको हितकारी, लेखन और वातकारक है । तथा कफ, पिन, गर,शूल, सूजन, अश, प्लीहा, पाण्डु, मेदरोग, प्रमेह, कृमि और कुष्ठको दूर करता है। लोहेका किट्ट, अर्थात मण्डूर भी लोहके समान ही गुणवाना है। अशुद्ध लोहके सेवन करनेसे नपुंसकता, कुष्ठरोग, मृत्यु, हृद्रोग, शूल, पथरी, हल्लास और अनेक प्रकारके रोगोंका प्रकोप होता है । विना शुद्ध संस्कार किये हुए लोह भरमके सेवन करनेसे जीवनकानाश, मद, जडता और हृदय दारुण पीड़ा उत्पन्न होती है। लोभम्मके सेवन करनेवाले मनुष्यको कूष्माण्ड (कद्द ) तिलतैछ उडदकी दाल, राई, मद्य मौर खट्टे रस को सर्वथा त्याग करदेना चाहिये ॥ ४१ ॥ १७ ॥ लोहसारम् । क्षमाभृच्छिखराकाराण्यंगान्यम्लेन लेपिते ।। लोहे स्युर्यत्र सूक्ष्माणि तत्सारमभिधीयते ॥ ४८ ॥ लोहं साराह्वयं इन्याद् ग्रहणीमतिसारकम् । अर्द्ध सर्वाङ्गजं वातं शुलं च परिणाम जम् ॥ १९॥ छदि च पीनसं पित्तं श्वास्त्रं कासं व्यपोहति ॥५०॥ जिस लोहेके चौडे टुकडे पर खट्टे रसके लेप करनेसे पर्वतके शिखरके प्राकारके बारीक २ चौहर चमकने नंगे, उसको साग्लोह कहते हैं। सारनामक लोह-संग्रहणी, अतिसार, प्रोगवात, सर्वाङ्गपात, परिणा. मशूल, छदी, पीमल, पित्त, श्वास और खांसीको दूर करता है ॥४८॥५०॥ कांतलोहम् । पात्रे यस्मिन् प्रसरति जले तैलबिंदुर्निषिक्तो विद्धं गंधं त्यजति च निजं रूषितं निंबकरकैः । ar
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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