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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । श्वेतखदिरः । ( २०१ ) खदिरः श्वेतसारोऽन्यः कदरः सोमवल्कलः । खदिरो विशदो वय मुखरोगकफास्रजित् ॥ ३३ ॥ श्वेतखदिर, श्वेतसार, कदर और सोमवल्कल यह खैर वृक्षके नाम हैं। श्वेत खदिर- खण्छ, वर्णको उत्तम करनेवाला तथा मुखरोग, कफ और रक्त विकारको जीतनेवाला है ॥ ३३ ॥ इरिमेदः । इरिमेदो विखदिरः कालस्कंधोऽरिमेदकः । इरिमेदः कषायोष्णो मुखदन्तगदास्रजित ॥ ३४ ॥ इंति कण्डूविषश्लेष्म कृमिकुष्ठ विषव्रणान् । इरिमेद, विखदिर, कालस्कन्ध और भरिमेदक यह दुर्गन्ध खेर के नाम हैं। इसको अंग्रेजीमें Spanj tree कहते हैं । इरिमेद-कसैला, उभ्या तथा मुखरोग, खांसी, रक्तविकार, कण्डू, विष, कफ, कृमि, कुष्ठ, गरदोष और वर्णोंको हरनेवाला है ॥ ३४ ॥ रोहीतकः । रोहीतको रोहितको रोहि दाडिमपुष्पकः ॥ ३५ ॥ रोहीतकः लीहघाती रुच्यो रक्तप्रसादनः । · रोहतक, रोहितक, रोही और दाहिमपुष्पक वह रोहेडेके नाम हैं। रोग-कीडाको नष्ट करनेवाला, रुचिकारक तथा रक्तको शुद्ध करनेवाली है ॥ ३५ ॥ किंकिरातः । बबूला किंकिरातः स्यात्कि कराटः सपीतकः ॥ ३६॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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