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________________ (१८४ ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। इनमें मीठे अनार-त्रिदोषनाशक, प्यास, दाह और ज्वरका नाश करने वाले, हृदय, कण्ठ और मुखरोगोंको हरनेवाले, तृप्तिकारक, बीर्यवर्धक, हलके, कषायानुरस प्राही, स्निग्ध, मेधा और बल के करनेवाले हैं। खटमिठा अनार-दीपन, रुचिकारक, किंचित् पित्तको करनेवाला और हलका होता है। खट्टा अनार-पित्तकारक. आमवात और कफके हरनेवाला होता है ॥ १०२.१०४ ॥ बहुवारः। बहुवारस्तु शीतः स्यादुद्दालो बहुवारकः ॥ १०५॥ शेलुः श्लेष्मातकश्चापि पिच्छिलो भूतवृक्षकः। . बहुवारो विषस्फोटवणवीसर्पकुष्ठनुत् ॥ १०६॥ मधुरस्तुवरस्तितः केश्यश्च कफपित्तहत् । फलमाम तु विष्टभि रूक्षं पित्तकफास्त्रजित् ।।१०७॥ तत्पक्वं मधुरं स्निग्धं श्लेष्मलं शीतलं गुरु । बहुवार, शीत, उद्दाल, बहुवारक, शेलु, श्लेग्मांतक, पिच्छिन और भृतवृक्ष यह लिप्सोदेके नाम हैं। इसको हिन्दीमें लिसोढ़, फारसी में सपिस्ता, अंग्रेजीमें Narrow leaved Sepistun करते हैं लिसोड़ा-: विष, फोडे, व्रण, विसर्प और कुषको नष्ट करता है। मधुर, कसैना और तिक्त है, वेशीको हितकारी तथा कफपित्त के जीतनेवाला है। इसके कच्चे फल विष्टम्भी, रूक्ष और पित्त, कफ तथा रक्त के जीतनेवाले हैं। इसके पके हुए फल-धुर, स्निग्ध, कफकारक, शीतल और भारी होते हैं ॥ १०५.१०७॥ - कतकम् । एयामसादि कतकं कत्तकं तत्फलं च तत् ॥१०८॥ कतकस्य फलं नेत्र्यं जलनिर्मलताकरम् । वातश्लेष्महरं शीतं मधुरं तुवरं गुरु ॥ १०९ ॥ पयःप्रसादी, कतक और कत्तक यह निर्मली धुक्ष तथा फलोंके नाम
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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