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________________ ( १७०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । अनुष्णं ग्राहि विष्टभि बालं चानिलकोपनम् । कफपित्तकरं स्यंदि पकं तृष्णं च पित्तलम् ॥ ३६॥ चिर्भट, धेनुदुग्ध और गोरक्षकर्कटी यह चिन्भडके नाम हैं । इसको हिन्दीमें चिम्भड, फारसीमें खयार पौर अंग्रेजी में Pubescetcucudmber कहते हैं। बालचिर्भट-मधुर, रूक्ष, भारी, पित्त और कफको हरनेवाला, अनुग्ण, ग्राही, विष्टम्भकारक है । पश्यचिर्भट-गरम तथा पित्तवर्धक है ॥३५॥३६॥ नारिकेलम् । नारिकेलो दृढफलो लांगली कूर्चशीर्षकः । तुङ्गः स्कंधफलश्वोच्चस्तृणराजः सदाफलः ॥ ३७॥ नारिकेलफलं शीतं दुर्जरं वस्तिशोधनम् । विष्टंभि बृंहणं बल्यं वातपित्तास्त्रदाहनुत् ॥ ३८॥ विशेषतः कोमलनारिकेलं निहंति पित्तज्वरपित्तदोषान् । तदेव जीण गुरु पित्तकारि विदाहि विष्टभि मतं भिषग्भिः तस्यांभः शीतलं हृद्यं दीपनं शुक्रलं लघु । पिपासापित्तजित्स्वादु वस्तिशुद्धिकरं परम् ॥४०॥ नारिकेलस्य तालस्य खजूरस्य शिरांसि च । कषायस्निग्धमधुरबृंहणानि गुरूणि च ॥४१॥ नारिकेल, दृढफल , लांगली, कूर्चशीर्षक, तुंग, स्कन्धफल, उच्च, तृणराज और सदाफल यह नारिकेल के नाम हैं। इसको हिन्दी में नारियल, फारसीमें फराज, और अंग्रेजीमें Coconut Palm कहते हैं। नारियल-शीत, दुर्जर, वस्तिशोधक विष्टम्भकारक, बलवर्धक तथा वात, पित्त, रक्तविकार पौर दाहको नष्ट करनेवाला है। कोमल Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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