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________________ (१६४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । अहृद्यस्तर्पणोऽतीव बृंहण कफवर्द्धनः । तस्य खंडं गुरु परं रोचनं चिरपाकि च ॥ १०॥ मधुरं बृंहणं बल्यं शीतलं वातनाशनम् । वातपित्तहरं रुच्यं बृंहणं बलवर्द्धनम् ॥ ११ ॥ वृष्यं वर्णकरं स्वादु दुग्धानं गुरु शीतलम् ॥१२॥ मंदानलत्वं विषमज्वरं च रक्तामयं बद्धगुदोदरं च । आघ्रातियोगो नयनामयं च करोति तस्मादति तानि नाद्यात् ॥ १३ ॥ एतदम्लाम्रविषयं मधुराम्रपरं न तु। मधुरस्य पर नेत्रहितत्वाया गुणा यतः ॥ १४ ॥ शंव्यम्भसोऽनुपानं स्यादाम्राणामतिभक्षणे । जीरकं वा प्रयोक्तव्यं सह सौवर्चलेन च ॥ १५ ॥ प्रथम आमके नाम और गुण कहते हैं-आम्र, चत, रसाल, सहकार, पतिसौरभ, कामांग, मधुक्त, माकन्द और पिकवल्लभ यह आमके नाम हैं। इसे हिन्दी में प्राम, फारसीमें प्रांबा और अंग्रेजीमें Mango कहते हैं। आमका फूल-शीतल, रुचिकारक, ग्राही, वातकारक और अतितार, कफ, पित्त, प्रमेह, रक्तप्रदर इनको नष्ट करनेवाला है। कच्चा माम-कसैला, खट्टा, रुचिकारक, वायु और पित्तको बढानेवाला होता है। तरुण (बड़ा और विना पका) पाप-प्रत्यन्त खट्टा, कक्ष और त्रिदोष तथा रक्तविकारको दर करनेवाला है। छिला हुआ कच्चा और धूपमें सुखाया हुमा पाम (भमचर)-अम्ल,स्वादु, कलैला, भेदन और कफ तथा वातको जीतने वाला होता है। Ahe!Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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