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________________ (१९२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । और कुलपुत्रक यह दमनकके नाम हैं। इसे हिन्दीमें दौना और अंग्रेजीमें Arteemesia Indica कहते हैं। दमनक-कषायरसवाला, तिक्त, हदयको प्रिय, वीर्यवर्धक, सुगन्धयुक्त पौर ग्रहणी, विष, कुष्ठ, रक्तविकार, क्लेद, कण्ड तथा त्रिदोष इनको नष्ट करनेवाला है । ६५ ॥ ६६ ।। वर्वरी। वर्वरी कवरी तुंगी खरपुष्पाजगंधिका । पर्णासस्तत्र कृष्णेतु कठिल्लककुठेरकौ ॥ ६७ ॥ तत्र शुक्लोजकः प्रोक्तो वटपत्रस्ततोऽपरः । वर्वरीत्रितयं रूक्षं शीतं कटु विदाहि च ॥ ६८ ॥ तीक्ष्णं रुचिकरं हृद्यं दीपनं लघुपाकि च। , पित्तलं कफवातारकंडुक्रिमिविषापहम् ॥ ६९॥ इति पुष्पवर्गः। वर्वरी, कवरी, तुंगी, खरपुष्पा, अगंधिका और पर्णात वह वर्वरीके नाम हैं । काली बर्वरीको कटिल्लक और कुठेरक, श्वेत. बर्बरीको अर्जक और तीसरे प्रकारकी बर्बरीको वटपत्र कहते हैं। बर्बरीको हिन्दीमें बनतुळसी अथवा बर्वरी और फारसीमें पलंग मुक कहते हैं। तीनों प्रकारकी वर्वरी-रूक्ष, शीत, कटु, दाहोत्पादक, तीक्ष्ण, रुचिकारक, हदयको प्रिय, दीपन, पाकमें हलकी, पित्तवर्धक और कफ, वात रक्तविकार, कण्डु, कृमि तथा विषको दूर करनेवाली है ॥ ६७-६९ ॥ इति श्रीविद्यालंकार-शिवशर्मवैद्यशास्त्रिकृत--शिवप्रकाशिकाभाषायां हरीतक्यादिनिघण्टौ पुष्पवर्गः समाप्तः ॥४॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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