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________________ ( १५२ ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । शतपत्री हिमा हृद्या ग्राहिणी शुक्रला लघुः ॥२१॥ atrara जिद्वर्ण्या तिक्ता कटूवी च पाचनी । शतपत्री, तरुणी, कणिका, चारुकेसरा, सहा, कुमारी. गंधाढया, साक्षापुष्पा तथा अतिमञ्जुला यह गुलाबके नाम हैं । इसको हिन्दी में गुलाब, फार्स में गुलेसुखं तथा अंग्रेजी में Cabbagerose कहते हैं । शतपत्री शील, हृदयको प्रिय, ग्राही, वीथ्यवर्धक, हलकी, त्रिदोष तथा रक्तविकारको नष्ट करनेवाली, वर्णको उत्तम करनेवाली, विक, कटु और पाचन है ॥ २० ॥ २१ ॥ वासन्ती । नेपाली कथिता तज्ज्ञैः सप्तला नवमालिका ॥ २२॥ वासंती शीतला लघ्वी तिक्ता दोषत्रयास्रजित् । नेपाली, सप्तला, नवमालिका और वार्सती यह नवमालिकाके नाम हैं । इसे हिन्दी में नेवारी या वासन्ती कहते हैं । नेवारी - शीतल, हलकी, तिक्त और त्रिदोषनाशक है ॥ २२ ॥ वार्षिकी । श्रीपदी षट्पदा नंदा वार्षिकी मुक्तबंधना ॥ २३ ॥ वार्षिकी शीतला लघ्वी तिक्ता दोषत्रयापदा | कर्णासमुखरोगघ्नी तत्तैलं तद्गुणं स्मृतम् ॥ २४ ॥ श्रीपदी, षट्पदा, नन्दा, वार्षिकी मुक्तबन्धना यह श्रीपदी के नाम हैं । श्रीपदी - शीतल, हलकी, तिक्त, त्रिदोषनाशक और कर्णरोग, अक्षिरोग और मुखरोगों को हरनेवाली है । इसके तैलमें भी इसके समान गुण हैं ॥ २३ ॥ २४ ॥ स्वर्णजातिका । जातिजती च सुमना मालती राजपुत्रिका । चेतकी हृद्यगंधा च सा पीता स्वर्णजातिका ॥२५॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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