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________________ (१४४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। जलपिप्पली। जलपिप्पल्यभिहिता शारदी शकुलादनी ॥३०॥ मत्स्यादनी मत्स्यगंधा लांगलीत्यपि कीर्तिता। . जलपिप्पलिका हृद्या चक्षुष्या शुक्रला लघुः३०१॥ संग्राहणी हिमा रूक्षा रक्तदाहवणापहा । कटुपाकरसा रुच्या कषाया वह्निवर्द्धनी ॥ ३०२॥ जलपिप्पली, शारदी, शकुला नो, मत्स्यादनी, मत्स्यगन्धा, लांगली यह जलपीपलके नाम हैं, जल पीपल-हृदयके लिये हितकारी, नेत्रोंको हितकारी, वीर्यवर्द्धक, हल्की, संग्राही, शीतल, रूत तथा रक्त दाह और व्रणों को हरनेवाली, पाक और रतमें कटु, रुचिकारक, कसैली और अग्निको बढानेवाली है ॥ ३००-३०२ ॥ गोजिह्वा । गोजिह्वा गोजिका गोजी दार्विका खरपणिनी । गोजिह्वा वातला शीता ग्राहणी कफपित्तनुत् ३.३॥ हृद्या प्रमेहकासास्रवणज्वरहरी लघुः । कोमला तुवरा तिक्ता स्वादुपाकरसा स्मृता॥३०४॥ गोजिबा, गोजी, दाविका, गोजिका खरपणिनी यह गोजिया घासके नाम हैं। इसको मन्तल, गाजवां पौर काहजवां भी कहते हैं। गोजि हापातकारक, शीतल, ग्राही, कफपित्तनाशक, हृदयको हितकारी, प्रमेह, कास, रक्तविकार, व्रण और ज्वरको हरनेवालो; कोमल कसैली, तिक्त, पाक और रसमें स्वादु होती है ॥ ३०३ ॥ ३०४ ॥ . नागदमनी। विज्ञेया नागदमनी बलामोटा विषापहा । नागपुष्पी नागपत्री महायोगेश्वरीति च ॥३०॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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