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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । ( १३९ ) रसायनी कषायोष्णा स्मृतिकांतिबलाग्निदा | दोषापस्मारभूतादिकुष्ठ किमि विषप्रणुत ॥ २७६ ॥ शंखपुष्पी, शंखाहा और मांगल्यकुतुमी यह शंखपुष्पीके नाम हैं । शंखपुष्पी - दस्तावर, बुद्धिवर्धक, वीर्यवर्धक, मानसिकरोगनाशक, रसायन, कषाय, उष्ण तथा स्मृति, कान्ति, बल और अग्नि इनको बढानेवाली है । दोष, अपस्मार, भूतादि रोग, कृमि तथा विषको हरनेवाली है ॥ २७५ ॥ २७६ ॥ अर्क. पुष्पी | अर्कपुष्पी क्रूरकर्मा पयस्या जलकामुका । अर्कgoपी कृमिश्लेष्ममेह पित्तविकारजित् ॥ २७७৷৷ अर्कपुष्पी, क्रूरकर्मा, पयस्या और जलकामुका यह प्रर्कपुष्पीके नाम हैं। हिन्दी भाषामें इसे अर्कफूली भी कहते हैं । अर्कपुष्पी - कृमि, कफ, प्रमेह और पित्तके विकारोंको जीतती है ॥ २७७ ॥ लज्जालुः । लज्जालुहिं शमीपत्रा समंगा जलकर्णिका । रक्तपादी नमस्कारी नाम्ना खदिरकेत्यपि ॥ २७८ ॥ लज्जालुः शीतला तिक्ता कषाया कफपित्तजित् । रक्तपित्तमतीसारं योनिरोगान्विनाशयेत् ॥ २७९ ॥ लज्जालु, शमीपत्रा, समङ्गा, जलकर्णिका, रक्तपादी, नमस्कारी, खदिरका यह लाजवन्तीके नाम हैं। हिन्दी भाषा में इसे छुईमुई कहते हैं। लाजवन्ती - शीतल, तिक्त और कषाय है तथा कफ, पिस, रक्तपित्त, अतिसार और योनिरोगोंको दूर करती है || २७८ ॥ २७९ ॥ तद्भेदः अलंबुषा । अलंबुषा खरत्वक् च तथा मेदोगला स्मृता । अलंबुषा लघुः स्वादुः कृमिपित्तकफापहा ॥ २८० ॥ लाजवन्त का भेद अलम्बुषा, खरत्वक और मेदोगला यह अलम्बुषाके
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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