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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टा.। (१३५) काकजंघा हिमा तिक्ता कषाया कफपित्तजित । निहंति ज्वरकुष्ठास्रक्रिमिकंडुविषप्रणुत् ॥२५७ ॥ काकजया, नदीकांता. काकतिक्ता,लोमशा,पारावतपदी, दासी और काका यह काजंघाके नाम हैं। काकजंघा-शीतल, तिक्त, कषाय, कफ, पित्तको जीतनेवाली तथा ज्वर, कुष्ठ, रक्तविकार, कृमि, कण्डू और विषको दूर करती है ॥ २५६ ॥ २५७ ।। नागपुष्पी। नागपुष्पी श्वेतपुष्पा नागरी रामदूतिका । नागरी रोचनी तिक्ता तीक्ष्णोष्णा कफपित्तनुत२५८ विनिहंति विषं शूलं योनिदोषवमिक्रिमीन् । नागपुष्पी, श्वेतपुष्पा, नागरी, रामदूतिका यह नागपुष्पीके नाम हैं। नागपुष्पी-रुचिकारक, तीक्ष्ण, उष्ण, तिक्त, कफपित्तनाशक तथा विष, शूल, योनिदोष, वमन और कृमियों को दूर करती है ॥ २५८ ।। मेषशृंगी। मेषशृंगी विषाणी स्यान्मेषवल्ल्याजशृंगिका॥२५९॥ मेषशृंगी रसे तिक्ता वातला श्वासकासहृत् । सूक्षा पाके कटुस्तिक्ता व्रणश्लेष्मातिशूलनुव२६०॥ मेषशृंगीफलं तिक्तं कुष्ठमेहकफप्रणुत् । दीपनं स्रेसनं कासकृमिव्रणविषापहम् ॥२६३ ॥ मेषशृङ्गी, विषाणी, मेषवल्ली, अजशृङ्गी यह मेढाङ्गीके नाम हैं मेटाशृङ्गो-रसमें तिक्त, वातकारक, श्वास-कासनाशक, रूक्ष, पाकमें कटु, तिक्त, व्रण, कफ और नेत्रशूलको दूर करती है। मेघसिंगोके फल
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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