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________________ ( १२२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । पौर कफ नाशक, हल्की तथा शूल, ज्वर, वमन, कुष, अतिसार, हृदयके रोग, दाह, खुजली, विष, श्याप्त, कृमि, गुल्म और विषके व्रणको नष्ट करता है ॥ १९१ ॥ १९२ ॥ श्वेता निशोथा। श्वेता त्रिवृत्रिभण्डी स्यात्रिवृता त्रिपुटापि च॥१९३॥ सर्वानुभूतिः सरलो निशोथो रेचनीति च । श्वेता त्रिवृद्रेचनी स्यात्स्वादुरुष्णा समीरहृत् १९४ रूक्षा पित्तज्वरश्लेष्मपित्तशोथोदरापहा। श्वेता, विवृत्, त्रिभण्डी, त्रिवृता, त्रिपुटा, सर्वानुभूति, सरल, निशोथ, रेचनी यह निसोतके नाम हैं। इसे अंग्रेजीमें Turbitn root कहते हैं। सफेद निखोत रेचनी, मधुर, उग्ण, वातनाशक, रूखी तथा पिस, ज्वर, कफ, शोथ और उदररोगको नष्ट करती है ॥ १९३ ॥ १९४ ॥ श्यामात्रिवृत् । त्रिवृच्छयामार्द्धचन्द्रा चपालिंदी च सुषेणिका१९५ श्यामा त्रिवृत्ततो हीनगुणा तीव्र विरेचनी । मच्छींदाहमदभ्रांतिकण्ठोत्कर्षणकारिणी ॥ १९६॥ विवृत, श्यामा, अधचन्द्रा, पालिन्दी, सुषेणिका यह कालीनिखोतके नाम हैं । कालीनिलोत उससे गुणमें कुछ हीन है । परन्तु बिरेचन करानेमें तीव्र है। मादाह, मद, भ्रम और कण्ठका खिचना, अधिक सेवनसे इन उपद्रवोंको करती है ॥ १९५ ॥ १९६ ॥ लध्वीदन्ती च बृहद्दन्ती ।। लघ्वी दन्ती विशल्या च स्यादुदुंबरपर्ण्यपि। तथैरंडफला शीघ्रा श्येनघण्टा घुणप्रिया ॥ १९७ ॥ वाराहांगी च कथिता निकुंभश्च मुकूलकः।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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