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________________ (९०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । हृद्यं कषायं मधुरं रोचनं लघु दीपनम् ॥ २८ ॥ गुल्मार्श कृमिहत्प्रौढं गुरुवातप्रकोपनम् । स्योनाक, शोषण, नट, कट्वंग, ढुंटुक, मण्डूकपर्ण, पत्रोर्ण, शुकनाश, कटुन्नट, दीर्घवृन्त, अरल, पृथुसिब भौर कटंभर यह स्योनाकके नाम हैं। इसे हिन्दीमें सोनापाठा कहते हैं। स्योनाक-दीपन, पाकमें कटु, कसैला, शीतल, ग्राही, तिक्त तथा वात, कफ, पित्त, कास, आम इनको नष्ट करता है। इसका कच्चा फल-खा, बात तथा कफनाशक, हृदयको प्रिय, कसैला, मधुर, रुचिकारक, हस्का, दीपन तथा गुल्म, प्रश, कृमि इनको नष्ट करता है और पका हुआ फल भारी तथा वातको कुपित करनेवाला है। यह शिमळेके पहाड़ोंमें और कालकाके पास बड़ा पृक्ष होता है, इसको तलवारके समान फल लगते हैं। और वहां इसे टाटमडंगा कहते हैं ॥२५-२८ ॥ बृहत्पश्चमूलम् । श्रीफलः सर्वतोभद्रा पाटला गणिकारिका । स्योनाकः पञ्चभिश्चतैः पञ्चमूलं महन्मतम् ॥ २९॥ पंचमूलं महत्तिक्तं कषायं कफवातनुत् । मधुरं श्वासकासघ्रमुष्णं लध्वग्निदीपनम् ॥३०॥ श्रीफल (विल ), सर्वतोभद्रा (काश्मरी), पाटना (पाढल ), गणिकारिका (अग्निमन्थ) तथा स्योनाक (सोनापाढा) इन पांचोंको मिलानेसे वृहपंचमूल बन जाता है । हतपंचमूल-अत्यन्त तिक्त, कसैना, कफ और वातको नष्ट करनेवाला, मधुर, श्वास और कासको हरनेवाला, गरम, लघु तथा अग्निदीपक है। २९ ॥ ३० ॥ शालपर्णी। शालपर्णी स्थिरा सौम्या त्रिपर्णी पीवरी गुहा । विदारिगंधा दीघोधिदर्दीधपत्रांशुमत्यपि ॥ ३१ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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