SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (८७) विल्वः । बिल्वः शाण्डिल्यशैलूषौ मालूरश्रीफलावपि ॥१२॥ गन्धगर्भः शलाटुश्च कण्टकी च सदाफलः॥ श्रीफलस्तुवरस्तितो ग्राही सूक्षोऽग्निपित्तकृत् ॥१३ वातश्लेष्महरो बल्यो लघुरुष्णश्च पाचनः। बिल्व, शांडिल्य, शैलूष, मालूर, श्रीफल, गन्धगर्भ, शलाटु, कण्टकी, सदाफल यह बिल्पके नाम हैं। अंग्रेजीमें इसे Bangakins कहते हैं। बिल्व-कसैला, तिक्त, ग्राही, खा, अग्नि और पित्तको बढानेवाला, वात धौर कफको हरनेवाला, बलवर्धक, हलका, उष्ण और पाचन गंभारी। गंभारी भद्रपर्णी च श्रीपर्णी मधुपर्णिका ॥ १४ ॥ काश्मीरी काश्मरी हीरा काश्मर्यः पीतरोहिणी । कृष्णवृन्ता मधुरसा महाकुसुमकापि च ॥ १९ ॥ काश्मरी तुवरा तिक्ता वीर्योष्णा मधुरा गुरुः। दीपनी पाचनी मेध्या भेदनी भ्रमशोथजित् ॥१६॥ दोषतृष्णामशूलार्शीविषदाहज्वरापहा । तत्फलं बृंहणं वृष्यं गुरु केश्य रसायनम् ॥ १७॥ वातपित्ततृषारक्तक्षयसूत्रविबंधनुत् । स्वादु पाके हिमं स्निग्धं तुवराम्लं विशुद्धिकृत्॥१८॥ हन्यादाहतृषावातरक्तपित्तक्षतक्षयान् । गम्भारी, भद्रपर्णी, श्रीपर्णी, मधुपर्णिका, काश्मीरी, काश्मरी, हीरा, काश्मर्य, पीतरोहिणी, कृष्णयन्ता, मधुरसा, महाकुसुमका यह गम्भारीके
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy