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________________ भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । হিতা। शैलेयं तु शिलापुष्पं वृद्ध कालानुसार्यकम् ॥९०॥ शलेयं शीतलं हृद्यं कफपित्तहरं लघु । कण्डुकुष्ठाश्मरीदाहविषहल्लासरक्तजित ॥ ९१॥ शैलेय, शिनापुष्प, वृद्ध, कालानुसार्यक यह शैलेयके नाम हैं। इसको हिन्दीमें भूरिछरीला तथा पत्थरका फूल और फारसीमें दहाल कहते हैं शैलेय छार छरीला-शीतल, हृदयको प्रिय, कफ और पिनको हरनेवाला, हलका तथा कुष्ठ, कण्डू, पथरी, दाह, विष हल्लास और रक्तबि. कारोको जीतता है ।। ९० ॥ ९१॥ मुस्तकं (नागरमुस्तकम् ) । मुस्तकं न स्त्रियां मुस्तं त्रिषु वारिदनामकम् । कुरुविन्दो परो भद्रमुस्तो नागरमुस्तकः ॥९२॥ मुस्तं हिमं कटु ग्राहि तितं दीपनपाचनम् । कषायकफपित्तात्रतडूज्वरारुचिजंतुजित् ।। ९३॥ अनूपदेशे यजातं मुस्तकं तत् प्रशस्यते । स्त्रापि मुनिभिः प्रोक्तं वरं नागरमुस्तकम् ।। ९४॥ मुस्तक शब्द बोलिंगमें नहीं होता । मुस्त शब्द विगिवाची हैं। मुस्तक, मुस्त, कुरुबिन्द, पर, भद्रमुस्त, नागरमुस्तक यह तथा मेघके सम्पूर्ण नाम यह नागरमोथेके संस्कृत नाम हैं। इसे हिन्दीमें मोथा अथवा नागरमोथा, और फारसोमें मुश्क जमीन कहते हैं । मुस्तक-कटु, शीतल, ग्राही, तिक्त, दीपन, पाचन, कसैला तथता कफ पित्त, रक्तविकार, वृषा,ज्वर, अरुचि और कृमियोंको जीतनेवाला है। जो मुस्तक अनूप देशमें उत्पन्न होता है वह उत्तम होता है। उसमें भी मुनियोंने नागर मुस्तकको श्रेष्ठ कहा है ।। ९३-९४ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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