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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (६७) रालोहिमोगुरुस्तिक्तः कषायो ग्राहको हरेत् । दोषास्रस्वेदवीसर्पज्वरव्रणविपादिका ॥ १९ ॥ ग्रहभनास्थिदग्धामशूलातीसारनाशनः । राळ, शालनिर्यास, सर्जरज, देवथूप, यक्षधूप और सर्वरस यह रालके संकृत नाम हैं। इसे हिन्दीमें राल, फारसीमें राल मगरबी और अंग्रेजीमें Yellow Risin कहते हैं। गल-शीतल, भारी, तिक्त, कलैली, ग्राही और दोष, रक्तविकार, स्वेद, विसर्प, ज्वर, व्रण, विपादिका, ग्रह, भन्नास्थि, अग्निसे दग्ध, पाम, शूल तथा अतिसारका नष्ट करती है॥४८ ॥४९॥ कुंदरुः। कुन्दरुस्तु मुकुन्दः स्यात्सुगन्धाकुन्द इत्यपि ॥५०॥ कुन्दरुमधुरस्तिक्तस्तीक्ष्णस्त्वच्याकटुर्हरेत् । ज्वरस्वेदग्रहालक्ष्मीमुखरोगकफानिलान् ॥५॥ कुंदरू, मुकुंद, सुगन्ध और कुंद यह कुन्दके संस्कृत नाम है, इसे हिन्दीमें नल कुन्दरु, फारसी में कंदुररूमी तथा अंग्रेजी में Alibanam कुंदरु-मधुर, तिक्त, तीक्ष्ण, त्वचाको हितकर, कटु तथा ज्वर, स्वेद, ग्रह, अलक्ष्मी, मुखरोग, कफ और वातको नष्ट करती है ॥५०॥५॥ सिहकः। सिद्धकस्तु तुरुष्कः स्याद्यतो यवनदेशजः। कपितैलं स चाख्यातं तथा च कपिनामकः ॥१२॥ सिद्धका कंटुकः स्वादुःस्निग्धोष्ण शुककांतिकृत् । वृष्यः कण्ठ्यः स्वेदकुष्ठज्वरदाहग्रहापहः ॥५३ ॥ सिद्धक, तुरुक, यवनदेशज, कपिल और कपिवाचक सम्पूर्ण शब्द इसके नाम हैं। इसे हिन्दीमें शिलारस, फारसीमें सरारस और अंग्रेजीमें Liquid Amber कहते हैं। Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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