SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (६१) वमन, तृष्णा, रक्तविकार, पित्त, ज्वर, व्रण, विष, इनका अपहरण करता है ॥ १६ ॥ १७ ॥ पतंगम् । पतंगं रक्तसारं च सुरंग रंजनं तथा । पटरंजकमाख्यातं पत्तूरं च कुचन्दनम् ॥ १८ ॥ पतंग मधुरं शीतं पित्तश्लेष्मत्रणा स्रनुत्.। हरिचन्दनवद्वेद्यं विशेषादाहनाशनम् ॥ १९ ॥ चन्दनानि तु सर्वाणि सदृशानि रसादिभिः। गन्धे न तु विशेषोऽस्ति पूर्व श्रेष्ठतमं गुणैः ॥२०॥ पतंग, रक्तसार, सुरंग, रंजन, पटरंजक, पत्तूर और कुचन्दन यह पतंगके संस्कृत नाम हैं । इसे हिन्दीमें पतंग अथवा पतंगवृक्ष, और फारसी बकम, अंग्रेजी में Sappan wood कहते हैं। पतंग-मधुर, शीतल तथा पित्त, कफ, व्रण पौर रक्तविकारोको दूर करता है। इसमें पीत और चन्दनके समान ही गुण हैं,परन्तु यह दाहको विशेष करके नष्ट करता है। रसादिकमें तो सब चन्दन समान ही हैं, केवल गन्धका ही भेद है। उन सबमें प्रथप (श्वेत चन्दन ) गुणों में सबसे श्रेष्ठ रे॥१८-२०॥ अगुरु कृष्णागुरु अगुरुसत्वं च । अगुरु प्रवरं लोहं राजाह योगजं तथा । वशिकं कृमिजं चापि कृमिजग्धमनार्यकम् ॥२१॥ अगुरूषण कटु त्वच्यं तितं तीक्ष्णं च पित्तलम् ।। लघुकर्णाक्षिरोगघ्नं शीतवातकफप्रणुत ॥२२॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy