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________________ [ २७ ] समली विहारका उद्धार कराया - इसका वि. व. भी कु. पा. च. से ज्ञात हो सकता है. ) सुना जाता है कि - कुमारपाल गिरिनार तीर्थ पर गये - परंतु रास्ता विषम होने से वह यात्रा न कर सके । राज सभायें उन्होंने एक समय यह प्रश्न किया कि गिरिनार तीर्थपर पौडियें बनानेका हमारा मनोरथ कौन पूरा कर सकता है ? इस पर किसी कविने आश्रमकी वडी योग्यता-धर्म निष्टाक्रिया कुशलता-संसारविरक्तता - शासनप्रियता आदि गुणों का परिचय कराकर कहा " धीमानाम्रः स पद्यां रचयतुमचिरादुज्जयंते नदीनः " ( देखो द्रौपदी स्वयंवर नाटक ) उवदेश तरंगिणीमें बाहड मंत्री - जोकि अंबेडका भाइ था उसके द्वारा इस कार्यका होना लिखा है. 66 66 यतः त्रिषष्टिलक्षद्रम्माणां, गिरिनारगिरौ व्ययात् । भव्या वाड देवेन, Aho ! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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