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________________ [२३] -तीर्थनक्ति-और-सुगममार्ग आबुरोड ( खराडी ) से देढ दो माईल पूर्वकी तर्फ कुछ खंडहर पडे हुए दिखाई देते हैं, यहां पहले जमानेमें "चंद्रावती" नगरी आबादथी । राजा भीमके सेनापति बिमलशाह मंत्री राजा से नाराज होकर यहां आकर द्वादश छत्रपति राजा हुएथे। और-आबुके जैन मंदिर उन्होंने यहाँ रहकर ही ब. नवाये थे. चौलुक्यकुलतिलक कुमारपाल जबरणथंभोरपर चढाई लेकर गये तब यहां के राजा सामन्तसिंह ने अन्तर्दिष्ट-और मुखेमिष्टवाली कपट जाल फैलाकर सोलंकी राजाका नाश करना चाहा था-परंतु-कुमारपाल अपनी दीर्घदार्शितासे उसके उस प्रपंचको जान गयाथा । आते हुए उसने सामंतसिंहको पुण्यका चमत्कार बतला कर सत्य रूपसे समझा दिया था कि-" यस्य पुण्यं बलं तस्य" इस चंद्रावतीका रहोस उदयन नामक शाहुकार जो घीका व्यापारी था. फिरता फिरता खंभात चला गया. वहां उसको अछे शकुन हुए । थोडे अरसेमें सिद्धराजकी तर्फसे वह सरकारी नौकर बनाया गया। Aho! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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