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________________ [२] स्तिक लोगोंका ही है । आस्तिक किसी देश जनपद या-जाति विशेषका नाम नहीं है । आस्तिक वह ही कहे जासक्त हैं कि-जो जीव-अजीव-पुध्य-पाप-आश्रव-संवर-निर्जरा-बंध-मोक्ष- जन्म -जन्मान्तर-स्वर्ग नरकके साथ ईश्वर परमात्माका होना कबूल करते हो. ईश्वरको सर्वज्ञ-सर्वदर्शीदयालु-मायालु-नीरज-परोपकारी-अनंत चतुष्टय धारक निरीह-निरभिमानी-अकर-ऋजु-अमायी ----सत्यमार्ग देशक-धर्मचक्रवर्ती-धर्मसारथीत्रिलोकी त्राता आदि यथार्थ गुणांके सागर मानकर उनके वचनोंका आराधन करते हैं । उनके बतलाये राहो रास्तेपर चलना यह भी ईश्वरकी भक्ति-पूजा-सेवा-सुश्रूषा कहलाती है, जैसे प्रभु पुष्पादिसें पूजे जाने पर-श्रद्धालुको मोक्षदाता होते हैं. वैसे उनकी आज्ञाके पालकको भो वह परमपद देते है, धूप-दीप-जल-चंदन आदि विविध प्रकारकी पूजा करनेवाले को पहले उस जगहसाल के आज्ञा वचनोंपर यकीन रखनेकी खास जरूरत है । “आस्था मूलाहि मी" Aho! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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