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________________ ( ५ ) राजे पोताना उत्कृष्ट भावथी अने पितानी पूर्ण सम्मतिथो दीक्षा लोधेली होवाथी एमनुं चारित्र निर्वीनपणे सरळ थयुं, अने गुरुमहाराजनी साथै बिहार करवा लाग्या • हेमचंद दीक्षा लीघा विना पितानी साये घेर आव्या, परन्तु चित्त तो वैराग्य वृत्तिवालुंज हतुं पुनः पितानो विचार हेमचंदने दीक्षा आपवानो थतां वर्त्तमानकाळमां विचरता श्रीमद् विजयसिद्धिमूरि पासे मोकल्या. श्रीविजयसिद्धिमूरीजीए दीक्षा आपी. अने श्रीकनक विजयजी नाम राख्युं. दीक्षा लीघा बाद लखतर वोरमगाम तरफ विहार कये. हेमचंदनी माताने अने सासरीयांने दीक्षानी चानी खबर पडी के तुर्त सासरीयांर अने माता जमना बाइए अमदावाद जइ सरकारमां अरजी करी. सगीर (काची ) वयना होवाथी तेओने भोळव्या छे एम जाणी कोरटे घेर मोकली देवा फरमायुं. लोकमां अपवाद न थवाना कारणथी हेमचंद घेर आल्या त्यारथी ससराए तेमने पाताने वेरज राख्या. तो पण स्वाभाविक वैराग्यवृत्ति न बदलाइ पिताश्री Aho! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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