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________________ [ १२० ] 44 " तस्माद्येनशिवासूनु - रुज्जयन्ते नमस्कृतः । “ तेन श्रद्धावतानून - मुपयेमे शिर्वेदिरा ॥ अर्थ - पद्मासन से विराजित - श्याममूर्त्ति - दिशाही है वस्त्र जिसके - शिवाराणीके पुत्र होनेसे जो शिव कहलाते है- अथवा - वामनावतार विश्वने जिनको शिव नाम से बुलाया है, जो महाघोर कलियुग मे सर्वपापोका नाश करनेवाले है । उनके दर्शन से - चरणस्पर्शन से कोटियज्ञ जितना फल प्राप्त होता है. इस लिये जिस पुण्यात्माने गिरनार तीर्थपर श्री नेमिनाथ प्रभुको वंदन नमस्कार किया, उस श्रद्धालुने निश्चय मुक्ति वनिताकी वरमाला पहक्ली ! ! ! इस बातको सुनकर परम श्रद्धालु रत्न श्रावकको तीर्थाधिराजपर अपूर्व भक्ति भाव जागा । उसने सभा - समक्ष खडे होकर प्रतिज्ञाकीकि गुरु महाराज के मुख से जिस तीर्थ राजकी प्रशंसा सुनी है चतुर्विध-संघ सहित ६ री पालता हुआ उस तीकी यात्रा करुं तबही मैं दूसरी विगय खाउंगा. Aho! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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