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________________ जेथी चतुर्मासमां महाराजश्रीना रसमय वाणीवाला धर्मोपदेशवडे सेंकडो जीवो प्रतिबोध पाम्या, तेमां पण मगनभाइ तो प्रथमथीज मुनिभक्तिवाळा अने धर्मीष्ट होवाथी महाराजश्रीना उपदेशथी मगनभाइने एवी वैराग्य वृत्ति जाग्रत थइ के आ संसारना क्षणभंगुर सुखको त्याग करवो एज श्रेष्ट छे. ___ सगनभाइने बे पुत्र हता, मोटा पुत्रनुं नाम मणि. लाल अने नाना पुत्रनुं नाम हेमचंद हतुं हेमचंद चार वर्षे न्हाना हता. बन्नेए सरकारी निशाळमां सारी अभ्यास कर्यो हतो अने बन्नेना विवाह पण थया हता, धर्मीष्ट पिताश्रीना परिचयथी बन्ने पुत्र निरंतर नवकारमंत्रनुं स्मरण करता, प्रतिकमणनां सूत्र अने देहरासरमां कहेबाना दूहा विगेरे धार्मिक अभ्यास पण करता, मूळथी बन्ने पुत्र बुद्धिशाळी अने पिताश्री धर्मनीष्ठ तेथी " बाप तेवा बेटा" ए कहेवतने अनुसारे धीरे धीरे धर्मप्रेमी थवाथी घणीवार मुनिनुं व्याख्यान श्रवण करवा जता. त्यारबाद धर्मज्ञान उपर प्रेम थगथी जीव विचार नक्तत्व विगेरे केटलांएक प्रकरणा नो अभ्यास को. मातपिताए बन्ने भाइओने परणा Aho! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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