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________________ [ १०७ ] चतुर्विध ने मन भायो || आज लगे तिणे ठामे पुजाये दरिशण दिठे दुरित पलार ॥ १६ ॥ वस्तु ॥ रतन श्रावक रतन सरिखो जोइए || पुरण प्रतिज्ञा जेने करि ॥ सकल देव पारखे पोहोतो || माताए सारज करि || संघ माहे स्थाप्यो सम्होतो ॥ वर प्रसाद करात्रियो ए श्री गिरनार उद्धार ॥ नेमि जिणेसर स्थापिया वरता जै जै कार ॥ १ ॥ ढाल १२ मी. ( कलशनी ) एम प्रथम उधारज किधो || भरते त्रिभुवन जस लीधो । एहि चाल छे । पुरि प्रतिज्ञा विणे एन सुधां सांव्यां तिणे नेग || धन्य २ सतवाद शिम ॥ वावरयां जिले सुवर्ग दिम ॥ १ ॥ जाचकना - छत पूरां । दालिद्र ते दुखियानां चूरां । तीरथनी थापना कीधी । किरति व्यापी संघले प्रसिधि ॥२॥ बलतां सौ संघ चलाया ।। शेत्रुनानि जात्राये -- व्या || प्रभु आदि जिनेसर वंदा || पातिक सर्वे Aho ! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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