SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वात्ततिः अथ हिंगुलयं जथा एगमण पारह तहाँ बन्धय चन्नं च सेर दस सिविडं। दूराओ आसन्नं मंदग्गी कोरए मिस्सं ॥२०॥ . कूटेवि तहिं खिविज्जइ मणसिल हरियाल सेर पा पायं । पूरिवि कच्च करावं दट्टिज्जइ खोरचुन्नेण ।।२१।। मढि मट्टिय सदलेणं तिन्नि अहोरत्ति वह्नि जालिज्जा। जाव सुगंधं ता हुइ सेर छयालीस हिंगुलयं ॥ २॥ अथ सिन्दूरं जहा - सोसयमणेगमज्झे वंसय रक्खा दहद्ध से राई। गालिवि मेलिवि कुट्टिवि छाणवि जलि घोलि परियव्वं ।।२३।। नित्तारिऊण नीरं जं हिढे तस्स वडिय कय सुक्कं । घणि कुट्टि हंखि छाणिय ठवि भट्ठो अग्गि कायव्वं ।।२४।। जह जह लग्गइ तावं तह तह रंग चडेइ जा ति दिणं । सेरूणं सिन्दूरं तग्गालिय हवइ पुण सीसं ॥२५।। एवं च भणिय संपइ कुधाउमज्झे सुधाउ भणिमोहं । कविय रंगे कणयं तोलय सय जव चउत्तीसं ॥२६।। सयतोलामज्झेणं बारह जव सीसए हवइ रुप्पं । पच्छा पुण पुण सोहिय तहावि निकणं न कइयावि ॥२७॥ २०. हिंमुन-एक मन पारद में गन्धक चूर्ण दस सेर डाल कर दूर से निकट धीमी आंच करके मिलाना। - २१. मणसिल हरताल पाव-पाव सेर कूट कर डाल देना। कांच के कडाव (तिजाब के भाँड) में डाल कर खोरिया चूने-खड़ी मिट्टी, की डाट लगा देना । २२. मिट्टी के दल से मढकर तीन अहोरात्र अग्नि जलाना। जब सुगंध पैदा हो जाय तब छयालीस सेर हिंगुल तैयार हो जाता है। २३. सिन्दूर-एक मन शीशा में बाँस की राख पाँच सेर गलाकर, मिनाकर, कूटकर छानकर जल में घोल कर रखना चाहिए । २४. पानी को नितार कर जो गाढा-घोल नीचे रहे उसकी बड़ी बनाकर सुखाना । फिर खूब कूटकर, छानकर भट्ठी पर रख कर आग जलाना चाहिए। २५. ज्यों-ज्यों ताप लगेगा, त्यों-त्यों तीन दिन पर्यन्त रंग चढ़ता ही जायगा। एक सेर से कुछ न्यून सिन्दूर बनने पर जो बचे उसे गलाने से.फिर शीशा हो जायगा। २६. यह तो कहा, अब कुधातु में सुधातु कितनी? सो कहता हैं। रांगे की सौ तोखे की कंबिया या गुल्ली में चौतीस जो सोना है। २७. सौ तोला सोसे में बारह जो रूपा (चाँदी) होता है। फिर बार-बार सोधने से भी निष्कश तो कभी नहीं होता (अर्थात् कुछ सोने चांदी का अंश रह ही जाता है)। Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy