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________________ २६ परीक्षा कणय मय सीयरामं दुविहं संजोय तह विओोयं च । दह वनी दस मासा अभन्नणीया सपूयवरा ।। ५६ ।। चडकडिय तह सिरोहिय अट्टी बनी सदा चउम्मासा | तुल्ले कुमरु पुणेवं अट्ठी बनी धुवं जाण ।। ५७ ।। पउमाभिहाण मुद्दा वारह वन्नीय तस्स कणओ य । तुल्लेण टकु इनको सत्त जवा सोल विसुर्वसा (२) ५८ (२) वा० १० सीताराम मासा १० १ संयोग वियोगी १ वानी ८ चउकडीया ४| वा० ८ सिरोहिया ४ या० ८ कुमक तिदुर्णागिरि मासा ४ वा० १२ पदमा टं १ जत्र ७ 5०11० ५३. वालिष्ट मुद्राएँ रौप्य मय तीन प्रकार की तोल वाली (पावली, अधेली और एक तोले की ) होती हैं जो प्रति ५२ द्रम्म में १६०, ८० और ४० आती हैं । ५४. श्रीदेवगिरि में उत्पन्न सोवण (१२१०-१४४७) मुद्रा ताल में एक मासे की है। अघमसी ठारा नामक मुद्रा है इनकी चाँदो साढ़े सतरह विसवा होती है। कोष्टक के संकेतानुसार इनका मूल्य चार द्रम्म और दो द्रम्म जानना चाहिए। ; ५५. करारी, खटियालय, रोगी नरहड़ादि जो अन्यान्य मुद्राएँ हैं उन सबको देखकर नजर से अथवा अग्नि में तपा कर चासनी से परीक्षा करनी चाहिए । रौप्य मुद्रा शेष हुई। ५६. सीताराम को संयोगी और वियोगी दो प्रकार की स्वर्णमुद्राएँ होती हैं । वे दसवान सोने की ओर तौल में दसमासा ( एक भरी) को हैं वे केवल पूजनीय और बिना भुनाने योग्य हैं । ५७. चौकड़िया, सीरोहिया और कुमरु' (त्रिभुवनगिरि के राजा कुमारपाल यादव की), ये तीनों स्वर्ण मुद्राएँ सवा चार मासा वजन में और आठवान सोने की हैं। ५८. पद्मा नामक मुद्रा का सोना बारवान का है और तोल में एक टॉक, सात जी और सोलह विसवा होती है। १. करौली से २४ मील उत्तर पूर्व में त्रिभुवनगिरि - वर्तमान तहनगठ है। इस यादव राजा कुमारपाल को युगप्रधान श्रीजिन दत्तसूरिजी ने प्रतिबोष किया (सं० १२११ से पूर्व ) था । सं० १२५२ में वृद्ध राजा कुमारपाल से मुहम्सव गोरी ने त्रिभुवनगिरि का राज्य ले लिया था। धोजिनदत्तसूरिजी की भक्ति करते हुए इनका तत्कालीन चित्र जेसलमेर भंडार में विद्यमान है । Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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