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________________ 13 द्रव्यपरीक्षा बधाई के उत्सव में सेठ रामदेव ने सोलह हजार पारुत्थद्रम्म व्यय किए थे। (यु०प्र० गुर्वावली) गूर्जरेश्वर वीरधवल के समय महाराष्ट्रीय चर्चरिक गोविन्द पण्डित जिसे अठारह पुर.रण, आठ व्याकरण चौपईवन्ध कण्ठस्थ थे--को चौवीस हजार पारुत्थक मुद्रा प्राप्त हुई । (पुरातन प्रबन्ध संग्रह) जालोर के राउल उदयसिंह ने सं० १३१० वसन्तपञ्चमी के दिन सुलतान जलालुद्दीन के घेरा डालने पर बापड़ राजपूत को सुलह के लिए नियुक्त किया। सुल्तान ने छत्तीस लाख द्रम्म दण्ड स्वरूप मांगे। उसने कहा मैं द्रम्म नहीं जानता पारुत्थक दे दूंगा। निकटस्थ व्यक्ति ने कहा-देव ! आप स्वीकार कर लें ! एक पारुत्थक के आठ द्रम्म होते हैं ! सुलतान ने मान लिया (पुरातन प्रबंध संग्रह १० ५१) इस वृत्तान्त से विदित होता है कि दिल्ली के प्रचलित द्रम्म से पारुत्थक का मूल्य आठगुना था। जयथल मुद्रा सं १३७५ में जयथल मुद्रा प्रचलित थी। इसी वर्ष ठक्कुर फेरू ने द्रव्यपरीक्षा का निर्माण किया था। इसी वर्ष कलिकाल केवली श्रीजिनचंद्र सूरिजी ने फलौदी पार्श्वनाथ जी की तृतीय वार यात्रा की। मंत्रीदलीय ठ० सेढु ने वाह हजार जैथल देकर इन्द्र पद ग्रहण किया। अन्य सव मिलाकर तीर्थ में तीस हजार जयथल की आय हुई। इसके बाद सूरिजी विचरते हुए दिल्ली की ओर पधारे और विशाल संघ के साथ हस्तिनापुर तीर्थ की यात्रा को। ठ० मदन के अनुज ठ० देवसिंह श्रावक ने बीस हजार जयथल देकर इन्द्र पद ग्रहण किया, ठ० हरिराजने आमात्य पद प्राप्त किया। हस्तिनापुर तीर्थ के भण्डार में एक लाख पवास हजार जयथल को आय हुई (युगप्रधानाचार्य गुर्वावली पृ०.६) द्रव्य परीक्षा की ७० वीं गाथा में मुद्राओं का मूल्य जयथल मुद्रा से आंका है। वीरवर्म देव चंदेल की मुद्रा का मूल्य २४ जयथल और हीरावर्मा की मुद्रा का मूल्य २२ जयथल है। द्विवल्लक द्रम्म मुद्रा द्रव्यपरीक्षा की रचना के पश्चात् सं० १३८० में योगिनीपुर-दिल्ली से संघपति रयपति ने दादा श्रीजिनकुशलसूरिजी के सानिध्य में यात्रीसंघ निकाला। संघपति के समस्त परिवार ने हेम टंकों से तथा अन्य लोगों ने रूप्य टंकों से प्रभु की नवांग पूजा की, अनेक उत्सव हुए। उच्चानगर के हेमलपुत्र कडया ने अपने भतीजे हरिपाल के साथ २६७४ द्विवल्लक द्रम्म देकर इन्द्र पद ग्रहण किया, तीर्थ में पचास हजार की आय हुई। इसी प्रकार गिरनार तीर्थ पर हमीरपत्तन वासी घीणा के पुत्र गोसल श्रावक ने २४७४ द्विवल्लक द्रम्म देकर इन्द्र पद प्राप्त किया। तीर्थ में चालीस हजार द्विवल्लक द्रम्म को उपज हुई। (युगप्रधानाचार्य गुर्वावली प०७५-७६) Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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